महबूब Poetry (page 6)

कोई समझाईयो यारो मिरा महबूब जाता है

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

इतनी मिलती है मिरी ग़ज़लों से सूरत तेरी

बशीर बद्र

वो ग़ज़ल वालों का उस्लूब समझते होंगे

बशीर बद्र

यार को हम ने बरमला देखा

बहराम जी

गरचे कुछ रंग उस का काला है

अज़मतुल्लाह ख़ाँ

वो तड़प जाए इशारा कोई ऐसा देना

अज़हर इनायती

डराने वाला सुन कर डर रहा है

आयुष चराग़

ये तिरी ज़ुल्फ़ का कुंडल तो मुझे मार चला

अतहर शाह ख़ान जैदी

फूल पर ओस है आरिज़ पे नमी हो जैसे

अतीक़ अंज़र

उन का जश्न-ए-साल-गिरह

असरार-उल-हक़ मजाज़

शैतान का फ़रमान

असरार जामई

ये आग मोहब्बत की बुझाए न बुझे है

असरा रिज़वी

अदावतों का ये उस को सिला दिया हम ने

असरा रिज़वी

ज़द पे आ जाएगा जो कोई तो मर जाएगा

असलम फ़र्रुख़ी

फिर याद उसे करने की फ़ुर्सत निकल आई

अशफ़ाक़ हुसैन

सिर्फ़ इक सोज़ तो मुझ में है मगर साज़ नहीं

असग़र गोंडवी

ग़म-ए-हयात से जब वास्ता पड़ा होगा

असद भोपाली

चोट दिल पर लगे और आह ज़बाँ से निकले

अरुण कुमार आर्य

उस का अंजाम भला हो कि बुरा हो कुछ हो

अरशद जमाल हश्मी

बुत-परस्ती ने किया आशिक़-ए-यज़्दाँ मुझ को

अरशद अली ख़ान क़लक़

आश्ना होते ही उस इश्क़ ने मारा मुझ को

अरशद अली ख़ान क़लक़

खिंच के महबूब के दामन की तरफ़

अर्श मलसियानी

पागलों की मद्ह में

अनवर सेन रॉय

एक ख़्वाहिश

अनवर सदीद

वादा-ए-शाम-ए-फ़र्दा पे ऐ दिल मुझे गर यक़ीं ही न आए तो मैं क्या करूँ

अनवर मिर्ज़ापुरी

जब मिरी ज़ीस्त के उनवाँ नए मतलूब हुए

अनवर मोअज़्ज़म

ऐ दो-जहाँ के मालिक आ'ला है नाम तेरा

अनीसा बेगम

भरे जो ज़ख़्म तो दाग़ों से क्यूँ उलझें?

आलोक यादव

वालिदा मरहूमा की याद में

अल्लामा इक़बाल

तस्वीर-ए-दर्द

अल्लामा इक़बाल

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