पूर्णिमा Poetry (page 3)

हमारा आइना बे-कार हो गया तो फिर!

इलियास बाबर आवान

गली-कूचों में हंगामा बपा करना पड़ेगा

इफ़्तिख़ार आरिफ़

रहेगा अक़्ल के सीने पे ता-अबद ये दाग़

हुरमतुल इकराम

वो शोख़ बाम पे जब बे-नक़ाब आएगा

हिज्र नाज़िम अली ख़ान

तारों से माहताब से और कहकशाँ से क्या

हीरा लाल फ़लक देहलवी

कभी जो आँखों के आ गया आफ़्ताब आगे

हसन अब्बासी

है जब से दस्त-ए-यार में साग़र शराब का

हैदर अली आतिश

कहीं आह बन के लब पर तिरा नाम आ न जाए

हबीब जालिब

पी भी ऐ माया-ए-शबाब शराब

ग़ुलाम मौला क़लक़

शेर कह लेने के बाद

फ़रहत एहसास

जब तमन्नाएँ मुस्कुराती हैं

फ़रीद इशरती

कमी ज़रा सी अगर फ़ासले में आ जाए

फ़राग़ रोहवी

आए कुछ अब्र कुछ शराब आए

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

परस्तिश-ए-ग़म का शुक्रिया क्या तुझे आगही नहीं

एहसान दानिश

मिरे मिटाने की तदबीर थी हिजाब न था

एहसान दानिश

कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर

एहसान दानिश

ख़ुद अपनी आग में सारे चराग़ जलते हैं

दिलावर अली आज़र

आज बदली है हवा साक़ी पिला जाम-ए-शराब

दाऊद औरंगाबादी

जली हैं धूप में शक्लें जो माहताब की थीं

दाग़ देहलवी

देते हैं मेरे जाम में देखें शराब कब

चंद्रभान कैफ़ी देहल्वी

हमारी जागती आँखों में ख़्वाब सा क्या था

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

नहीं है अश्क से ये ख़ून-ए-नाब आँखों में

बाक़र आगाह वेलोरी

दमक उठी है फ़ज़ा माहताब-ए-ख़्वाब के साथ

बद्र-ए-आलम ख़लिश

वो इक नज़र से मुझे बे-असास कर देगा

अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा

गिर्दाब-ए-रेग-ए-जान से मौज-ए-सराब तक

अज़हर नक़वी

वो माहताब अभी बाम पर नहीं आया

अज़हर इक़बाल

ढला जो दिन तो गया नूर-ए-आफ़्ताब भी साथ

अता हुसैन कलीम

आवारा

असरार-उल-हक़ मजाज़

मिरी वफ़ा का तिरा लुत्फ़ भी जवाब नहीं

असरार-उल-हक़ मजाज़

वो मेरा है तो कभी भी न आज़माऊँ उसे

अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन

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