पूर्णिमा Poetry (page 4)

मौजों का अक्स है ख़त-ए-जाम-ए-शराब में

असग़र गोंडवी

जिस हुस्न की है चश्म-ए-तमन्ना को जुस्तुजू

असर सहबाई

लुत्फ़ गुनाह में मिला और न मज़ा सवाब में

असर सहबाई

ये शहर है वो शहर कि जिस में हैं बे-वज्ह कामयाब चेहरे

अर्जुमंद बानो अफ़्शाँ

सुबू में अक्स-ए-रुख़-ए-माहताब देखते हैं

आरिफ़ इमाम

सुबू में अक्स-ए-रुख़-ए-माहताब देखते हैं

आरिफ़ इमाम

ब-फ़ैज़-ए-आगही ये क्या अज़ाब देख लिया

अंजुम ख़लीक़

ख़्वाब जो बिखर गए

आमिर उस्मानी

फिर तिरी यादों की फुंकारों के बीच

आलोक मिश्रा

वरक़-ए-इंतिख़ाब दिल में है

अली ज़हीर लखनवी

न माह-रू न किसी माहताब से हुई थी

अली मुज़म्मिल

सारे मौसम बदल गए शायद

अलीना इतरत

वक़्त की क़द्र

अख़्तर शीरानी

नज़्र-ए-वतन

अख़्तर शीरानी

एक हुस्न-फ़रोश से

अख़्तर शीरानी

दावत

अख़्तर शीरानी

हमारे हाथ में कब साग़र-ए-शराब नहीं

अख़्तर शीरानी

बजा कि है पास-ए-हश्र हम को करेंगे पास-ए-शबाब पहले

अख़्तर शीरानी

अगर वो अपने हसीन चेहरे को भूल कर बे-नक़ाब कर दे

अख़्तर शीरानी

मेरे लहू में उस ने नया रंग भर दिया

अख़्तर होशियारपुरी

शरार-ए-संग जो इस शोर-ओ-शर से निकलेगा

अकबर हमीदी

बहुत सजाए थे आँखों में ख़्वाब मैं ने भी

ऐतबार साजिद

टूट गया हवा का ज़ोर सैल-ए-बला उतर गया

अहमद मुश्ताक़

तन्हाई से बचाव की सूरत नहीं करूँ

अहमद कमाल परवाज़ी

मैं ख़ाक में मिले हुए गुलाब देखता रहा

अफ़ज़ाल फ़िरदौस

हाल खुलता नहीं जबीनों से

अदा जाफ़री

हाथ में माहताब हो जैसे

आबिद वदूद

उन को अहद-ए-शबाब में देखा

अब्दुल हमीद अदम

दर-ए-उफ़ुक़ पे रक़म रौशनी का बाब करें

अब्बास ताबिश

चराग़-ए-सुब्ह जला कोई ना-शनासी में

अब्बास ताबिश

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