दृश्य Poetry (page 26)

चमकते चाँद से चेहरों के मंज़र से निकल आए

फ़ुज़ैल जाफ़री

उमीद की कोई चादर तो सामने आए

फ़िरदौस गयावी

अभी निकलो न घर से तंग आ के

फ़िराक़ जलालपुरी

हिण्डोला

फ़िराक़ गोरखपुरी

इन आँखों में बिन बोले भी मादर-ज़ाद तक़ाज़ा है

फ़ज़्ल ताबिश

तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

तू है मअ'नी पर्दा-ए-अल्फ़ाज़ से बाहर तो आ

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

सुलगना अंदर अंदर मिस्रा-ए-तर सोचते रहना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

पाया-ए-ख़िश्त-ओ-ख़ज़फ़ और गुहर से ऊँचा

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मुझे मंज़ूर काग़ज़ पर नहीं पत्थर पे लिख देना

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

आइने रूप चुरा लेंगे उधर मत देखो

फ़े सीन एजाज़

उस की गली में ज़र्फ़ से बढ़ कर मिला मुझे

फ़व्वाद अहमद

मनाज़िर ख़ूब-सूरत हैं

फ़ातिमा हसन

यादों के सब रंग उड़ा कर तन्हा हूँ

फ़ातिमा हसन

नहीं समझी थी जो समझा रही हूँ

फ़ातिमा हसन

मुज़्तरिब दिल की कहानी और है

फ़सीह अकमल

कुछ नया करने की ख़्वाहिश में पुराने हो गए

फ़सीह अकमल

ग़ुबार-ए-तंग-ज़ेहनी सूरत-ए-ख़ंजर निकलता है

फ़सीह अकमल

सुब्ह होती है तो दफ़्तर में बदल जाता है

फ़रियाद आज़र

हाँ कभी रूह को नख़चीर नहीं कर सकता

फ़रताश सय्यद

यूँ मुसल्लत तो धुआँ जिस्म के अंदर तक है

फ़र्रुख़ जाफ़री

रौशनी से किस तरह पर्दा करेंगे

फ़र्रुख़ जाफ़री

शहर का मंज़र हमारे घर के पस-ए-मंज़र में है

फ़ारूक़ शफ़क़

रात काफ़ी लम्बी थी दूर तक था तन्हा मैं

फ़ारूक़ शफ़क़

खिड़कियों पर मल्गजे साए से लहराने लगे

फ़ारूक़ शफ़क़

धीरे धीरे शाम का आँखों में हर मंज़र बुझा

फ़ारूक़ शफ़क़

पूरे क़द से मैं खड़ा हूँ सामने आएगा क्या

फ़ारूक़ नाज़की

मेरे चेहरे की स्याही का पता दे कोई

फ़ारूक़ नाज़की

जब भी तुम को सोचा है

फ़ारूक़ नाज़की

हिसार-ए-जिस्म से आगे निकल गया होता

फ़ारूक़ नाज़की

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