दृश्य Poetry (page 24)

वो जो अब तक लम्स है उस लम्स का पैकर बने

हकीम मंज़ूर

टूट कर बिखरे न सूरज भी है मुझ को डर बहुत

हकीम मंज़ूर

मुंतशिर सायों का है या अक्स-ए-बे-पैकर का है

हकीम मंज़ूर

ख़ुशबुओं की दश्त से हमसायगी तड़पाएगी

हकीम मंज़ूर

कब इस ज़मीं की सम्त समुंदर पलट कर आए

हकीम मंज़ूर

है इज़्तिराब हर इक रंग को बिखरने का

हकीम मंज़ूर

ढल गया जिस्म में आईने में पत्थर में कभी

हकीम मंज़ूर

छोड़ कर बार-ए-सदा वो बे-सदा हो जाएगा

हकीम मंज़ूर

अज़िय्यतों को किसी तरह कम न कर पाया

हकीम मंज़ूर

आग जो बाहर है पहुँचेगी अंदर भी

हकीम मंज़ूर

लफ़्ज़ तेरी याद के सब बे-सदा कर आए हैं

हैदर क़ुरैशी

पत्थर में फ़न के फूल खिला कर चला गया

हफ़ीज़ ताईब

लब-ए-फ़ुरात वही तिश्नगी का मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

हमारे अहद का मंज़र अजीब मंज़र है

हफ़ीज़ बनारसी

नीलो

हबीब जालिब

गर मैं नहीं तो दर्द का पैकर कोई तो है

हबीब कैफ़ी

याद जो आए ख़ुद शरमाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने

हबीब आरवी

पुराने पेड़ को मौसम नई क़बाएँ दे

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

एक मैं हूँ और लाख मसाइल ख़ुदा गवाह

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

धूल न बनना आईनों पर बार न होना

गुलज़ार वफ़ा चौदरी

कौन पस-ए-मंज़र में उजड़े पैकरों को देखता

गुलज़ार बुख़ारी

कितनी सदियाँ ना-रसी की इंतिहा में खो गईं

गुलज़ार बुख़ारी

सहमा सहमा डरा सा रहता है

गुलज़ार

ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता

गुलज़ार

याद नहीं है

गुलनाज़ कौसर

वहम नहीं है

गुलनाज़ कौसर

किसी की याद का चेहरा

गुलनाज़ कौसर

बम धमाका

गुलनाज़ कौसर

न पूछ ऐ मिरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी

गुलनार आफ़रीन

तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख

गुहर खैराबादी

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