दृश्य Poetry (page 25)

हवा के हाथ में ख़ंजर है और सब चुप हैं

गोविन्द गुलशन

दिल में ये एक डर है बराबर बना हुआ

गोविन्द गुलशन

फिर वो नज़र है इज़्न-ए-तमाशा लिए हुए

गोपाल मित्तल

काविश-ए-बे-सूद

ग़ज़ाला ख़ाकवानी

उबल पड़ा यक-ब-यक समुंदर तो मैं ने देखा

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

एक ज़ाती नज़्म

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

''अटलांटिक सिटी''

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

वादे यख़-बस्ता कमरों के अंदर गिरते हैं

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

रात का हर इक मंज़र रंजिशों से बोझल था

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

ख़ामोश थे तुम और बोलता था बस एक सितारा आँखों में

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कहीं लोग तन्हा कहीं घर अकेले

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

गुलाबों के नशेमन से मिरे महबूब के सर तक

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

गलियों की उदासी पूछती है घर का सन्नाटा कहता है

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

आफ़ाक़ में फैले हुए मंज़र से निकल कर

ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर

कहीं मोहब्बत के आसमाँ पर विसाल का चाँद ढल रहा है

ग़ुलाम हुसैन साजिद

ज़बाँ साकित हो क़त-ए-गुफ़्तुगू हो

ग़ुबार भट्टी

यक़ीन जानिए इस में कोई करामत है

ग़ज़नफ़र

तारीकी में नूर का मंज़र सूरज में शब देखोगे

ग़ज़नफ़र

रफ़्ता रफ़्ता आँखों को हैरानी दे कर जाएगा

ग़ज़नफ़र

ख़्वाब आँखों की गली छोड़ के जाने निकले

ग़यास मतीन

भीगी भीगी बरखा रुत के मंज़र गीले याद करो

ग़ौस सीवानी

ग़ुरूर-ए-नाज़ दिखा तुझ में कितना जौहर है

ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी

रंगों की बारिशों से धुँदला गया है मंज़र

ग़ालिब इरफ़ान

अल्फ़ाज़-ए-बे-सदा का इम्कान आइने में

ग़ालिब इरफ़ान

बज़्म-ए-शाहंशाह में अशआर का दफ़्तर खुला

ग़ालिब

सामने आँखों के घर का घर बने और टूट जाए

गणेश बिहारी तर्ज़

चमकते चाँद से चेहरों के मंज़र से निकल आए

फ़ुज़ैल जाफ़री

सर-ए-सहरा-ए-दुनिया फूल यूँ ही तो नहीं खिलते

फ़ुज़ैल जाफ़री

रुख़ हवाओं के किसी सम्त हों मंज़र हैं वही

फ़ुज़ैल जाफ़री

चेहरे मकान राह के पत्थर बदल गए

फ़ुज़ैल जाफ़री

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