दृश्य Poetry (page 23)

इश्क़ में दिल का ये मंज़र देखा

हनीफ़ अख़गर

हर तरफ़ हैं ख़ाना-बर्बादी के मंज़र बे-शुमार

हनीफ़ अख़गर

अजब है आलम अजब है मंज़र कि सकता में है ये चश्म-ए-हैरत

हनीफ़ अख़गर

जल्वों का जो तेरे कोई प्यासा नज़र आया

हनीफ़ अख़गर

इश्क़ में दिल का ये मंज़र देखा

हनीफ़ अख़गर

अज़्म-ए-सफ़र से पहले भी और ख़त्म-ए-सफ़र से आगे भी

हनीफ़ अख़गर

हम इस ख़ातिर तिरी तस्वीर का हिस्सा नहीं थे

हम्माद नियाज़ी

आँख बीनाई गँवा बैठी तो

हम्माद नियाज़ी

यक़ीन की सल्तनत थी और सुल्तानी हमारी

हम्माद नियाज़ी

सेहन-ए-आइंदा को इम्कान से धोए जाएँ

हम्माद नियाज़ी

जब मुंडेरों पे परिंदों की कुमक जारी थी

हम्माद नियाज़ी

हुज्रा-ए-ख़्वाब से बाहर निकला

हम्माद नियाज़ी

गली का मंज़र बदल रहा था

हम्माद नियाज़ी

दिल के सूने सहन में गूँजी आहट किस के पाँव की

हम्माद नियाज़ी

आए मशरिक़ से शहसवार बहुत

हामिदी काश्मीरी

रात

हमीदा शाहीन

न जाने कब लिखा जाए

हमीदा शाहीन

मिरी दुनिया का मेहवर मुख़्तलिफ़ है

हमीदा शाहीन

देखने वाले को बाहर से गुमाँ होता नहीं

हामिद जीलानी

भूल जा मत रह किसी की याद में खोया हुआ

हामिद जीलानी

अपने हिसार-ए-जिस्म से बाहर भी देखते

हामिद जीलानी

हमीं हैं दर-हक़ीक़त अपने क़ारी

हामिद हुसैन हामिद

वही देखूँ जिसे देखा न जाए

हमीद कौसर

कभी तो रंग-ए-हुस्न-ए-यार देखूँ

हमीद कौसर

मिरी आँखों से हट कर कुछ नहीं है

हमीद गौहर

शजर-ए-तर न यहाँ बर्ग-ए-शनासा कोई

हमीद अलमास

न सताइश की तमन्ना

हमीद अलमास

रख दिया है मिरी दहलीज़ पे पत्थर किस ने

हमीद अलमास

तुम्हारे बाद उजाले भी हो गए रुख़्सत

हकीम नासिर

कभी वो हाथ न आया हवाओं जैसा है

हकीम नासिर

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