दृश्य Poetry (page 27)
गहरी नीली शाम का मंज़र लिखना है
फ़ारूक़ नाज़की
नक़्श आख़िर आप अपना हादिसा हो जाएगा
फ़ारूक़ मुज़्तर
अपनी आँखों के हिसारों से निकल कर देखना
फ़ारूक़ मुज़्तर
ज़रा सी देर में
फ़ारूक़ बख़्शी
जब हम पहली बार मिले थे
फ़ारूक़ बख़्शी
कैसे इन सच्चे जज़्बों की अब उस तक तफ़्हीम करूँ
फ़ारूक़ बख़्शी
कोई मंज़र भी सुहाना नहीं रहने देते
फ़ारिग़ बुख़ारी
जबीं का चाँद बनूँ आँख का सितारा बनूँ
फ़ारिग़ बुख़ारी
देख कर उस हसीन पैकर को
फ़ारिग़ बुख़ारी
न दौलत की तलब थी और न दौलत चाहिए है
फ़रहत नदीम हुमायूँ
बड़ा वसीअ है उस के जमाल का मंज़र
फ़रहत एहसास
आँखों की प्यालियों में बारिश मची हुई है
फ़रहत एहसास
ज़मीं से अर्श तलक सिलसिला हमारा भी था
फ़रहत एहसास
वो मेरी जाँ के सदफ़ में गुहर सा रहता है
फ़रहत एहसास
तन्हाई के आब-ए-रवाँ के साहिल पर बैठा हूँ मैं
फ़रहत एहसास
सूने सियाह शहर पे मंज़र-पज़ीर मैं
फ़रहत एहसास
मैं महफ़िल-बाज़ घबरा कर हुआ तन्हाई वाला
फ़रहत एहसास
जिस को जैसा भी है दरकार उसे वैसा मिल जाए
फ़रहत एहसास
जब उस को देखते रहने से थकने लगता हूँ
फ़रहत एहसास
हमेशा का ये मंज़र है कि सहरा जल रहा है
फ़रहत एहसास
है शोर साहिलों पर सैलाब आ रहा है
फ़रहत एहसास
बादल इस बार जो उस शहर पे छाए हुए हैं
फ़रहत एहसास
इक दिल की ख़ातिर इतने तो फ़ित्ने कभी न थे
फ़राज़ सुल्तानपूरी
सारे मंज़र दिलकश थे हर बात सुहानी लगती थी
फ़रह इक़बाल
कैसे मंज़र हैं जो इदराक में आ जाते हैं
फ़रह इक़बाल
दिन में भी हसरत-ए-महताब लिए फिरते हैं
फ़राग़ रोहवी
फटी मश्कें लिए दिन-रात दरिया देखने वाले
फ़क़ीह हैदर
वो सुब्ह-ए-ईद का मंज़र तिरे तसव्वुर में
फ़ानी बदायुनी
क़सम न खाओ तग़ाफ़ुल से बाज़ आने की
फ़ानी बदायुनी
मुझ पे रखते हैं हश्र में इल्ज़ाम
फ़ानी बदायुनी
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