मौजूद Poetry (page 4)

वो पल ये घड़ी

साजिदा ज़ैदी

वो इश्क़ जो हम को लाहिक़ था

साजिदा ज़ैदी

ग़म-ए-मौजूद ग़लत और ग़म-ए-फ़र्दा बातिल

साहिर देहल्वी

न जाने क्यूँ सदा होता है एक सा अंजाम

सग़ीर मलाल

हमें कहती है दुनिया ज़ख़्म-ए-दिल ज़ख़्म-ए-जिगर वाले

साइल देहलवी

तोहमत-ए-हसरत-ए-पर्वाज़ न मुझ पर बाँधे

रिन्द लखनवी

साइलाना उन के दर पर जब मिरा जाना हुआ

रिन्द लखनवी

बजा है हम ज़रूरत से ज़ियादा चाहते हैं

रियाज़ मजीद

ख़ाक उड़ती है रात-भर मुझ में

रहमान फ़ारिस

दस्तक सी ये क्या थी कोई साया है कि मैं हूँ

राज़ी अख्तर शौक़

और ज़रा कज मिरी कुलाह तो होती

राशिद मुफ़्ती

इश्क़ से बच के किधर जाएँगे हम

रंगीन सआदत यार ख़ाँ

मुझ में ख़ुश्बू बसी उसी की है

रम्ज़ी असीम

है कोई बैर सा उस को मिरी तदबीर के साथ

राजेश रेड्डी

उर्दू का जनाज़ा है ज़रा धूम से निकले

रईस अमरोहवी

मौज-ए-हवा की ज़ंजीरें पहनेंगे धूम मचाएँगे

राही मासूम रज़ा

तबर-ओ-तेशा-ओ-तासीर कहाँ से लाएँ

राहील फ़ारूक़

अब तिरे लम्स को याद करने का इक सिलसिला और दीवाना-पन रह गया

इरफ़ान सत्तार

साल नौ के लिए एक नज़्म

इक़बाल नाज़िर

बे-कसी पर ज़ुल्म ला-महदूद है

इक़बाल कैफ़ी

शब ख़्वाब में देखा था मजनूँ को कहीं अपने

इंशा अल्लाह ख़ान

बात के साथ ही मौजूद है टाल एक न एक

इंशा अल्लाह ख़ान

हम-साए में शैतान भी रहता है ख़ुदा भी

इमरान आमी

राखी बंधन

इमाम अाज़म

चूमता पानी, पानी पानी

इफ़्तेख़ार जालिब

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

कोई भी शख़्स जो वहम-ओ-गुमाँ की ज़द में रहा

हीरानंद सोज़

साक़िया ये जो तुझ को घेरे हैं

हीरा लाल फ़लक देहलवी

न समझे दिल फ़रेब-ए-आरज़ू को

हसरत मोहानी

महरूम-ए-तरब है दिल-ए-दिल-गीर अभी तक

हसरत मोहानी

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