मौजूद Poetry (page 1)

जो मुझ में छुपा मेरा गला घोंट रहा है

फ़हमीदा रियाज़

दूसरा जन्म

बलराज कोमल

शहर की गलियाँ चराग़ों से भर गईं

जवाज़ जाफ़री

महा-भारत

ग़ज़नफ़र

दुश्मन की तरफ़ दोस्ती का हाथ

मुनीर नियाज़ी

इक नफ़स नाबूद से बाहर ज़रा रहता हूँ मैं

ज़ुल्फ़िक़ार आदिल

ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है

ज़ुहूर नज़र

मौजूद कुछ नहीं यहाँ मादूम कुछ नहीं

ज़ियाउल हसन

तिरे ग़याब को मौजूद में बदलते हुए

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

सुकूत से भी सुख़न को निकाल लाता हुआ

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

कहीं ये लम्हा-ए-मौजूद वाहिमा ही न हो

ज़िया-उल-मुस्तफ़ा तुर्क

दिल के ज़ख़्मों पे वो मरहम जो लगाना चाहे

ज़ियाउल हक़ क़ासमी

सूई

ज़ीशान साहिल

रंग

ज़ीशान साहिल

क़तरे

ज़ीशान साहिल

मिरे दिल के टूटे सितारे को तुम ने

ज़ीशान साहिल

लोग

ज़ीशान साहिल

ईरीना

ज़ीशान साहिल

घूमते हुए ग्लोब पर

ज़ीशान साहिल

ग्लैडिएटर

ज़ीशान हैदर

उस पे करना मिरे नालों ने असर छोड़ दिया

ज़ैनुल आब्दीन ख़ाँ आरिफ़

नज़्म

ज़ाहिद डार

तू अगर ग़ैर है नज़दीक-ए-रग-ए-जाँ क्यूँ है

ज़हीर काश्मीरी

अहल-ए-दिल मिलते नहीं अहल-ए-नज़र मिलते नहीं

ज़हीर काश्मीरी

जहाँ में कौन कह सकता है तुम को बेवफ़ा तुम हो

ज़हीर देहलवी

वो नहीं उस की मगर जादूगरी मौजूद है

ज़फ़र इक़बाल ज़फ़र

वही मिरे ख़स-ओ-ख़ाशाक से निकलता है

ज़फ़र इक़बाल

जहाँ मेरे न होने का निशाँ फैला हुआ है

ज़फ़र इक़बाल

हज़ार बंदिश-ए-औक़ात से निकलता है

ज़फ़र इक़बाल

हमारे सर से वो तूफ़ाँ कहीं गुज़र गए हैं

ज़फ़र इक़बाल

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