मौजूद Poetry (page 7)

ख़ेमा-ए-जाँ को जो देखूँ तो शरर-बार लगे

आमिर नज़र

चश्म-ए-बे-कैफ़ में कारिंदा-ए-मंज़र न रहा

आमिर नज़र

वस्ल की शब भी ख़फ़ा वो बुत-ए-मग़रूर रहा

अमीर मीनाई

मैं ने सोचा है रात-भर तुम को

अंबरीन हसीब अंबर

भरे जो ज़ख़्म तो दाग़ों से क्यूँ उलझें?

आलोक यादव

शिकवा

अल्लामा इक़बाल

जवाब-ए-शिकवा

अल्लामा इक़बाल

फ़क़्र के हैं मोजज़ात ताज ओ सरीर ओ सिपाह

अल्लामा इक़बाल

तुम नहीं आए थे जब

अली सरदार जाफ़री

होली

अली जव्वाद ज़ैदी

उर्दू

आलम मुज़फ्फ़र नगरी

जल बुझा हूँ मैं मगर सारा जहाँ ताक में है

आलम ख़ुर्शीद

ख़ाक से ख़्वाब तलक एक सी वीरानी है

अकरम महमूद

मुझ से मत पूछ मिरा हाल-ए-दरूँ रहने दे

अख़लाक़ बन्दवी

फ़र्ज़ी लतीफ़ा

अकबर इलाहाबादी

हूँ मैं परवाना मगर शम्अ तो हो रात तो हो

अकबर इलाहाबादी

दर्द तो मौजूद है दिल में दवा हो या न हो

अकबर इलाहाबादी

बे-तकल्लुफ़ बोसा-ए-ज़ुल्फ़-ए-चलीपा लीजिए

अकबर इलाहाबादी

वही बे-बाकी-ए-उश्शाक़ है दरकार अब भी

अजमल सिराज

शीशे शीशे को पैवस्त-ए-जाँ मत करो

अहसन यूसुफ़ ज़ई

हाँ नहीं के बीच धुँदलाई सी शाम

अहसन यूसुफ़ ज़ई

मुस्तक़बिल

अहमक़ फफूँदवी

तू मौजूद है मैं मादूम हूँ इस का मतलब ये है

अहमद शहरयार

फैल रहा है ये जो ख़ाली होने का डर मुझ में

अहमद शहरयार

रेस्तोराँ

अहमद नदीम क़ासमी

तू अगर पास नहीं है कहीं मौजूद तो है

अहमद मुश्ताक़

छट गया अब्र शफ़क़ खुल गई तारे निकले

अहमद मुश्ताक़

हवा के हाथ पे छाले हैं आज तक मौजूद

अहमद ख़याल

हर एक रंग धनक की मिसाल ऐसा था

अहमद ख़याल

आँखों की तज्दीदा

अहमद जावेद

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