मौजूद Poetry (page 6)

खींच कर अक्स फ़साने से अलग हो जाओ

दिलावर अली आज़र

मेरे ख़ामोश ख़ुदा

बुशरा एजाज़

मिल चुका महफ़िल में अब लुत्फ़-ए-शकेबाई मुझे

बिस्मिल इलाहाबादी

जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है

भारतेंदु हरिश्चंद्र

इश्क़ के आसार हैं फिर ग़श मुझे आया देखो

बेदम शाह वारसी

ज़ौक़-ए-उल्फ़त अब भी है राहत का अरमाँ अब भी है

बशीरुद्दीन अहमद देहलवी

रात दिन इक बेबसी ज़िंदा रही

बलवान सिंह आज़र

दीदा-ए-तर

बलराज कोमल

यार को हम ने बरमला देखा

बहराम जी

सब रंग में उस गुल की मिरे शान है मौजूद

ज़फ़र

जो यहाँ हाज़िर है वो मिस्ल-ए-गुमाँ मौजूद है

अज़्म बहज़ाद

अहद-नामा-ए-इमराेज़

अज़ीज़ क़ैसी

वो गर्द है कि वक़्त से ओझल तो मैं भी हूँ

अताउल हक़ क़ासमी

गुज़र चुका है जो लम्हा वो इर्तिक़ा में है

आसिम वास्ती

दामन-ए-गुल में कहीं ख़ार छुपा देखते हैं

आसिम वास्ती

मक़्सूद-अली-'दीवाना'

आसिफ़ रज़ा

थीं ज़मीनें गुम-शुदा और आसमाँ मिलता न था

अशरफ़ शाद

क़ैद-ए-हस्ती में हूँ अपने फ़र्ज़ की तामील तक

अश्क अमृतसरी

दिल किसी ख़्वाहिश का उकसाया हुआ

अशफ़ाक़ नासिर

इतना बे-नफ़अ नहीं उस से बिछड़ना मेरा

अशफ़ाक़ हुसैन

ज़िंदगी मौत का आईना

असग़र नदीम सय्यद

दोज़ख़ भी क्या गुमान है जन्नत भी है फ़रेब

आरिफ़ शफ़ीक़

फ़रिश्तों से भी अच्छा मैं बुरा होने से पहले था

अनवर शऊर

ग़ुस्सैला परिंदा एक दिन उसे खा जाएगा

अनवार फ़ितरत

यूसुफ़-ए-हुस्न का हुस्न आप ख़रीदार रहा

अनवर देहलवी

अश्क बेताब व निगह बे-बाक व चश्म-ए-तर ख़राब

अनवर देहलवी

एक क़दीम ख़याली की निगरानी में

अंजुम सलीमी

घर में मिट्टी का दिया मौजूद है

अंजुम ख़याली

रू-ए-गुल चेहरा-ए-महताब नहीं देखते हैं

अनीस अशफ़ाक़

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