जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है
उसी का सब है जल्वा जो जहाँ में आश्कारा है
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बख़्त ने फिर मुझे इस साल खिलाई होली
न बोसा लेने देते हैं न लगते हैं गले मेरे
गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में
किसी पहलू नहीं आराम आता तेरे आशिक़ को
ग़ज़ब है सुर्मा दे कर आज वो बाहर निकलते हैं
बुत-ए-काफ़िर जो तू मुझ से ख़फ़ा है
बुत-ए-काफ़िर जो तू मुझ से ख़फ़ा हो
बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
ये चार दिन के तमाशे हैं आह दुनिया के
रहमत का तेरे उम्मीद-वार आया हूँ