बख़्त ने फिर मुझे इस साल खिलाई होली
सोज़-ए-फ़ुर्क़त से ज़ि-बस मुझ को न भाई होली
शो'ला-ए-इश्क़ भड़कता है तो कहता हूँ 'रसा'
दिल जलाने के लिए आह ये आई होली
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ये कह दो बस मौत से हो रुख़्सत क्यूँ नाहक़ आई है उस की शामत
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
रहमत का तेरे उम्मीद-वार आया हूँ
दिल मिरा तीर-ए-सितम-गर का निशाना हो गया
किस गुल के तसव्वुर में है ऐ लाला जिगर-ख़ूँ
हो गया लाग़र जो उस लैला-अदा के इश्क़ में
ग़ज़ब है सुर्मा दे कर आज वो बाहर निकलते हैं
फ़साद-ए-दुनिया मिटा चुके हैं हुसूल-ए-हस्ती मिटा चुके हैं
बात करने में जो लब उस के हुए ज़ेर-ओ-ज़बर
रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं
अजब जौबन है गुल पर आमद-ए-फ़स्ल-ए-बहारी है