बात करने में जो लब उस के हुए ज़ेर-ओ-ज़बर
एक साअत में तह-ओ-बाला ज़माना हो गया
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रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी
फ़साद-ए-दुनिया मिटा चुके हैं हुसूल-ए-हस्ती मिटा चुके हैं
ग़ज़ब है सुर्मा दे कर आज वो बाहर निकलते हैं
दिल मिरा तीर-ए-सितम-गर का निशाना हो गया
असीरान-ए-क़फ़स सेहन-ए-चमन को याद करते हैं
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है
उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले
रुख़-ए-रौशन पे उस की गेसू-ए-शब-गूँ लटकते हैं
बख़्त ने फिर मुझे इस साल खिलाई होली
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
हो गया लाग़र जो उस लैला-अदा के इश्क़ में
आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया