ऐ 'रसा' जैसा है बरगश्ता ज़माना हम से
ऐसा बरगश्ता किसी का न मुक़द्दर होगा
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उठा के नाज़ से दामन भला किधर को चले
किसी पहलू नहीं आराम आता तेरे आशिक़ को
आ जाए न दिल आप का भी और किसी पर
मसल सच है बशर की क़दर नेमत ब'अद होती है
बुत-ए-काफ़िर जो तू मुझ से ख़फ़ा हो
बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी
रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है
दिल आतिश-ए-हिज्राँ से जलाना नहीं अच्छा
गुलाबी गाल पर कुछ रंग मुझ को भी जमाने दो
ख़याल-ए-नावक-ए-मिज़्गाँ में बस हम सर पटकते हैं