आ जाए न दिल आप का भी और किसी पर
देखो मिरी जाँ आँख लड़ाना नहीं अच्छा
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मर गए हम पर न आए तुम ख़बर को ऐ सनम
किसी पहलू नहीं चैन आता है उश्शाक़ को तेरे
किस गुल के तसव्वुर में है ऐ लाला जिगर-ख़ूँ
मसल सच है बशर की क़दर नेमत ब'अद होती है
अभी तो आए हो जल्दी कहाँ है जाने की
ग़ज़ब है सुर्मा दे कर आज वो बाहर निकलते हैं
फिर आई फ़स्ल-ए-गुल फिर ज़ख़्म-ए-दिल रह रह के पकते हैं
बख़्त ने फिर मुझे इस साल खिलाई होली
ऐ 'रसा' जैसा है बरगश्ता ज़माना हम से
ये चार दिन के तमाशे हैं आह दुनिया के
आ गई सर पर क़ज़ा लो सारा सामाँ रह गया
फ़साद-ए-दुनिया मिटा चुके हैं हुसूल-ए-हस्ती मिटा चुके हैं