ये चार दिन के तमाशे हैं आह दुनिया के
रहा जहाँ में सिकंदर न और न जम बाक़ी
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गले मुझ को लगा लो ऐ मिरे दिलदार होली में
अभी तो आए हो जल्दी कहाँ है जाने की
बुत-ए-काफ़िर जो तू मुझ से ख़फ़ा है
ये कह दो बस मौत से हो रुख़्सत क्यूँ नाहक़ आई है उस की शामत
मसल सच है बशर की क़दर नेमत ब'अद होती है
बाल बिखेरे आज परी तुर्बत पर मेरे आएगी
फिर आई फ़स्ल-ए-गुल फिर ज़ख़्म-ए-दिल रह रह के पकते हैं
असीरान-ए-क़फ़स सेहन-ए-चमन को याद करते हैं
दश्त-पैमाई का गर क़स्द मुकर्रर होगा
रहे न एक भी बेदाद-गर सितम बाक़ी
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है
छानी कहाँ न ख़ाक न पाया कहीं तुम्हें