मक़्तल Poetry (page 3)

कोई मुँह चूम लेगा इस नहीं पर

रियाज़ ख़ैराबादी

आप आए तो ख़याल-ए-दिल-ए-नाशाद आया

रियाज़ ख़ैराबादी

हुए जब से मोहब्बत-आश्ना हम

रिफ़अत सुलतान

कुछ लोग समझने ही को तयार नहीं थे

राज़ी अख्तर शौक़

ये वक़्त जब भी लहू का ख़िराज माँगता है

रज़ा मौरान्वी

क़ातिल सभी थे चल दिए मक़्तल से रातों रात

रउफ़ ख़लिश

अपनी बे-चेहरगी में पत्थर था

रसा चुग़ताई

अब के इस तरह तिरे शहर में खोए जाएँ

राम रियाज़

हब्स के आलम में महबस की फ़ज़ा भी कम नहीं

रईस अमरोहवी

आसमानों से न उतरेगा सहीफ़ा कोई

इंद्र मोहन मेहता कैफ़

जल कर जिस ने जल को देखा

इमरान शमशाद

नफ़्स-ए-सरकश को क़त्ल कर ऐ दिल

इमदाद अली बहर

ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

एक रुख़

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ये बस्तियाँ हैं कि मक़्तल दुआ किए जाएँ

इफ़्तिख़ार आरिफ़

सब चेहरों पर एक ही रंग और सब आँखों में एक ही ख़्वाब

इफ़्तिख़ार आरिफ़

बस्ती भी समुंदर भी बयाबाँ भी मिरा है

इफ़्तिख़ार आरिफ़

अब बताओ जाएगी ज़िंदगी कहाँ यारो

हिमायत अली शाएर

साथ में अग़्यार के मैं भी सफ़-ए-मक़्तल में हूँ

हातिम अली मेहर

अक़्ल से हासिल हुई क्या क्या पशीमानी मुझे

हसरत मोहानी

तिरे ख़याल तिरी आरज़ू से दूर रहे

हाशिम रज़ा जलालपुरी

गया वो ख़्वाब-ए-हक़ीक़त को रू-ब-रू कर के

हसन नईम

तारीख़ की अदालत

हसन हमीदी

हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला

हसन बरेलवी

हुस्न जब मक़्तल की जानिब तेग़-ए-बुर्राँ ले चला

हसन बरेलवी

उन के आने पे दिल फ़िदा होगा

हंस राज सचदेव 'हज़ीं'

हमारी ही बदौलत आ गई है

हमीद गौहर

लहू की मय बनाई दिल का पैमाना बना डाला

हफ़ीज़ बनारसी

तमाम रात बुझेंगे न मेरे घर के चराग़

हबाब तिर्मिज़ी

तुम वफ़ा का एवज़ जफ़ा समझे

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

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