मक़्तल Poetry (page 5)
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
आज मक़्तल में ख़बर है कि चराग़ाँ होगा
बेताब सूरी
न क्यूँ-कर नज़्र दिल होता न क्यूँ-कर दम मिरा जाता
बेख़ुद देहलवी
बताए देती है बे-पूछे राज़ सब दिल के
बेदम शाह वारसी
अगर काबा का रुख़ भी जानिब-ए-मय-ख़ाना हो जाए
बेदम शाह वारसी
आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी
बशर नवाज़
निशान-ए-ज़ख़्म पे निश्तर-ज़नी जो होने लगी
बद्र-ए-आलम ख़लिश
जितने थे रंग हुस्न-ए-बयाँ के बिगड़ गए
अज़ीज़ क़ैसी
ग़लत-बयाँ ये फ़ज़ा महर ओ कीं दरोग़ दरोग़
अज़ीज़ हामिद मदनी
निहत्ते आदमी पे बढ़ के ख़ंजर तान लेती है
औरंगज़ेब
कैसा मंज़र गुज़रने वाला था
औरंगज़ेब
अश्क को दरिया बनाया आँख को साहिल किया
औरंगज़ेब
न शाम है न सवेरा अजब दयार में हूँ
अतहर नफ़ीस
तीर-ए-नज़र ने आप की घाएल किया मुझे
अशहद बिलाल इब्न-ए-चमन
कहने आए थे कुछ कहा ही नहीं
असग़र वेलोरी
दम-ब-ख़ुद बैठ के ख़ुद जैसे ज़बाँ गीली है
आरज़ू लखनवी
वो ले के हौसला-ए-अज़्म-ए-बे-पनाह चले
अर्श मलसियानी
हमें नज़दीक कब दिल की मोहब्बत खींच लाती है
आरिफ़ शफ़ीक़
ख़ून कितना बहा था मक़्तल में
आरिफ़ इमाम
उस गली से मिरे गुज़रने तक
आरिफ़ इमाम
आज की तारीख़ में इंसाँ मुकम्मल कौन है
आराधना प्रसाद
वो मक़्तल में अगर खींचे हुए तलवार बैठे हैं
अनवरी जहाँ बेगम हिजाब
केंचुली बदलती रात
अनवार फ़ितरत
उन से हम लौ लगाए बैठे हैं
अनवर देहलवी
आओ देखें अहल-ए-वफ़ा की होती है तौक़ीर कहाँ
अनवर मोअज़्ज़म
उसे यादों में जब लाना मुसलसल कर दिया मैं ने
अनुभव गुप्ता
ये कैसी बात मिरा मेहरबान भूल गया
अंजुम ख़लीक़
रक़्स-ए-जुनूँ की गर्मी-ए-तासीर देखना
अंजुम इरफ़ानी
दर्द का शहर कहीं कर्ब का सहरा होगा
अमीर क़ज़लबाश
आज की रात भी गुज़री है मिरी कल की तरह
अमीर क़ज़लबाश
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