आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी

आहट पे कान दर पे नज़र इस तरह न थी

एक एक पल की हम को ख़बर इस तरह न थी

था दिल में दर्द पहले भी लेकिन न इस क़दर

वीराँ तो थी हयात मगर इस तरह न थी

हर एक मोड़ मक़्तल-ए-अरमान-ओ-आरज़ू

पहले तो तेरी राहगुज़र इस तरह न थी

जब तक सबा ने छेड़ा न था निकहत-ए-गुलाब

कूचा-ब-कूचा महव-ए-सफ़र इस तरह न थी

बरसों में पहले होती थी नम आस्तीं कभी

अर्ज़ां मता-ए-दीदा-ए-तर इस तरह न थी

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