मर Poetry (page 22)

हमारे सब्र का इक इम्तिहान बाक़ी है

चित्रांश खरे

समंदर का सुकूत

चन्द्रभान ख़याल

वतन की ख़ाक से मर कर भी हम को उन्स बाक़ी है

चकबस्त ब्रिज नारायण

रामायण का एक सीन

चकबस्त ब्रिज नारायण

कुछ ऐसा पास-ए-ग़ैरत उठ गया इस अहद-ए-पुर-फ़न में

चकबस्त ब्रिज नारायण

फ़ना का होश आना ज़िंदगी का दर्द-ए-सर जाना

चकबस्त ब्रिज नारायण

देने वाले ये ज़िंदगी दी है

ब्रहमा नन्द जलीस

इस क़दर बढ़ गई वहशत तिरे दीवाने की

बूम मेरठी

कौन समझे इश्क़ की दुश्वारियाँ

बिस्मिल सईदी

रुख़ पे गेसू जो बिखर जाएँगे

बिस्मिल अज़ीमाबादी

ये कैसी आग अभी ऐ शम्अ तेरे दिल में बाक़ी है

बिस्मिल इलाहाबादी

क़ाबिल-ए-शरह मिरा हाल-ए-दिल-ए-ज़ार न था

बिस्मिल इलाहाबादी

जो दिल में उस को बसाए वो और कुछ न करे

बिमल कृष्ण अश्क

नज़र आता है वो जैसा नहीं है

बिलक़ीस ज़फ़ीरुल हसन

कैसी कैसी नहीं करता रहा मन-मानी मैं

भवेश दिलशाद

असीरान-ए-क़फ़स सेहन-ए-चमन को याद करते हैं

भारतेंदु हरिश्चंद्र

'बेख़ुद' तो मर मिटे जो कहा उस ने नाज़ से

बेख़ुद देहलवी

वो सुन कर हूर की तारीफ़ पर्दे से निकल आए

बेख़ुद देहलवी

वो देखते जाते हैं कनखियों से इधर भी

बेख़ुद देहलवी

मुझ को न दिल पसंद न वो बेवफ़ा पसंद

बेख़ुद देहलवी

दोनों ही की जानिब से हो गर अहद-ए-वफ़ा हो

बेख़ुद देहलवी

ऐसा बना दिया तुझे क़ुदरत ख़ुदा की है

बेख़ुद देहलवी

अब इस से क्या तुम्हें था या उमीद-वार न था

बेख़ुद देहलवी

साथ साथ अहल-ए-तमन्ना का वो मुज़्तर जाना

बेखुद बदायुनी

भूक चेहरों पे लिए चाँद से प्यारे बच्चे

बेदिल हैदरी

क़फ़स की तीलियों से ले के शाख़-ए-आशियाँ तक है

बेदम शाह वारसी

न तो अपने घर में क़रार है न तिरी गली में क़याम है

बेदम शाह वारसी

न सुनो मेरे नाले हैं दर्द-भरे दार-ओ-असरे आह-ए-सहरे

बेदम शाह वारसी

हम मय-कदे से मर के भी बाहर न जाएँगे

बेदम शाह वारसी

लहू टपका किसी की आरज़ू से

बयान मेरठी

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