मर Poetry (page 7)

बर्क़ मेरा आशियाँ कब का जला कर ले गई

ज़ौक़

अब तो घबरा के ये कहते हैं कि मर जाएँगे

ज़ौक़

कब चला जाता है 'शहपर' कोई आ के सामने

शहपर रसूल

इश्क़ की मेरे जो शोहरत हो गई

मुस्तफ़ा ख़ाँ शेफ़्ता

किताब-ए-हुस्न है तू मिल खुली किताब की तरह

शाज़ तमकनत

क़ैद-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म

शाज़ तमकनत

हम-ज़ाद

शाज़ तमकनत

सिमट सिमट सी गई थी ज़मीं किधर जाता

शाज़ तमकनत

शिकन शिकन तिरी यादें हैं मेरे बिस्तर की

शाज़ तमकनत

ज़माना याद रक्खेगा तुम्हें ये काम कर जाना

शायान क़ुरैशी

शाम के ढलते सूरज ने ये बात मुझे समझाई है

शायान क़ुरैशी

जफ़ा पे शुक्र का उम्मीद-वार क्यूँ आया

शौक़ क़िदवाई

दिल मिरा टूटा तो उस को कुछ मलाल आ ही गया

शौक़ क़िदवाई

रो रही है जिस तरह ये शम्अ परवाने के बाद

शौक़ देहलवी मक्की

ये हसीं होंगे मेहरबाँ मिरे ब'अद

शौक़ बहराइची

जो मस्त-ए-जाम-ए-बादा-ए-इरफ़ाँ न हो सका

शौक़ बहराइची

मोहब्बत की इंतिहा पर

शारिक़ कैफ़ी

तन से जब तक साँस का रिश्ता रहेगा

शारिक़ कैफ़ी

नहीं मैं हौसला तो कर रहा था

शारिक़ कैफ़ी

पत्थर की भूरी ओट में लाला खिला था कल

शम्सुर रहमान फ़ारूक़ी

ये घर जो हमारे लिए अब दश्त-ए-जुनूँ है

शम्स फ़र्रुख़ाबादी

तू याद आया और मिरी आँख भर गई

शमीम तारिक़

तिरे अहल-ए-दर्द के रोज़-ओ-शब इसी कश्मकश में गुज़र गए

शमीम जयपुरी

अपना साया देख कर मैं बे-तहाशा डर गया

शमीम अनवर

तेरे नालों से कोई बदनाम होता जाएगा

शाकिर कलकत्तवी

ज़ात का गहरा अंधेरा है बिखर जा मुझ में

शकील मज़हरी

ज़िंदगी ऐसे भी हालात बना देती है

शकील जमाली

लोग कहते हैं कि इस खेल में सर जाते हैं

शकील जमाली

चाहत की लौ को मद्धम कर देता है

शकील जमाली

रक़्क़ासा-ए-हयात से

शकील बदायुनी

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