मर Poetry (page 8)

भूक में इश्क़ की तहज़ीब भी मर जाती है

शकील आज़मी

ज़रा से ग़म के लिए जान से गुज़र जाना

शकील आज़मी

बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका

शकेब जलाली

बद-क़िस्मती को ये भी गवारा न हो सका

शकेब जलाली

न दिन पहाड़ लगे अब न रात भारी लगे

शकेब बनारसी

दाइमी सुख

शाइस्ता मुफ़्ती

मौत मेरी सखी

शाइस्ता हबीब

था पास अभी किधर गया दिल

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

न बुलबुल में न परवाने में देखा

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जो मिरे हम-अस्र हम-सोहबत थे सो सब मर गए

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

जब आप से ही गुज़र गए हम

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

देखने से तिरे जी पाता हूँ

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

अब की चमन में गुल का ने नाम ओ ने निशाँ है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

अपने रोज़ ओ शब का आलम कर्बला से कम नहीं

शहज़ाद क़मर

हर एक गाम पे सदियाँ निसार करते हुए

शहज़ाद नय्यर

दुनिया अपनी मौत जल्द-अज़-जल्द मर जाने को है

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

दुनिया अपनी मौत जल्द-अज़-जल्द मर जाने को है

शहज़ाद अंजुम बुरहानी

सोता जागता साया

शहज़ाद अहमद

मैं और तू

शहज़ाद अहमद

यूँ ख़ाक की मानिंद न राहों पे बिखर जा

शहज़ाद अहमद

उठीं आँखें अगर आहट सुनी है

शहज़ाद अहमद

देखने उस को कोई मेरे सिवा क्यूँ आए

शहज़ाद अहमद

वो कौन था वो कहाँ का था क्या हुआ था उसे

शहरयार

एक और मौत

शहरयार

कब समाँ देखेंगे हम ज़ख़्मों के भर जाने का

शहरयार

अजीब सानेहा मुझ पर गुज़र गया यारो

शहरयार

इस सोच में ही मरहला-ए-शब गुज़र गया

शहराम सर्मदी

हम ज़ब्त की हदों से गुज़र भी नहीं गए

शहनाज़ नूर

मेज़ पे चेहरा ज़ुल्फ़ें काग़ज़ पर

शहनवाज़ ज़ैदी

इस अरसा-ए-महशर से गुज़र क्यूँ नहीं जाते

शाहिद कमाल

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