मरहम Poetry (page 4)

किस क़दर मुझ को ना-तवानी है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

कहीं कहीं से पुर-असरार हो लिया जाए

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में

ग़ालिब

न पूछ नुस्ख़ा-ए-मरहम जराहत-ए-दिल का

ग़ालिब

लरज़ता है मिरा दिल ज़हमत-ए-मेहर-ए-दरख़्शाँ पर

ग़ालिब

वो बर्क़ का हो कि मौजों के पेच-ओ-ताब का रंग

फ़ाज़िल अंसारी

न दामनों में यहाँ ख़ाक-ए-रहगुज़र बाँधो

फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी

मैं जब कभी उस से पूछता हूँ कि यार मरहम कहाँ है मेरा

फ़रहत एहसास

तुझे ख़बर हो तो बोल ऐ मिरे सितारा-ए-शब

फ़रहत एहसास

बहुत सी आँखें लगीं हैं और एक ख़्वाब तय्यार हो रहा है

फ़रहत एहसास

यूँ नज़्म-ए-जहाँ दरहम-ओ-बरहम न हुआ था

फ़ानी बदायुनी

तू फूल की मानिंद न शबनम की तरह आ

फ़ना निज़ामी कानपुरी

अँधेरे लाख छा जाएँ उजाला कम नहीं होता

फ़ना बुलंदशहरी

मिरे हमदम मिरे दोस्त!

फ़ैज़ अहमद फ़ैज़

धूप सा यू कपूल नारी है

फ़ाएज़ देहलवी

कुछ लोग जो सवार हैं काग़ज़ की नाव पर

एहसान दानिश

कहा लैला की माँ ने

दिलावर फ़िगार

उम्मीद

दाऊद ग़ाज़ी

फ़लक देता है जिन को ऐश उन को ग़म भी होते हैं

दाग़ देहलवी

मसर्रत को मसर्रत ग़म को जो बस ग़म समझते हैं

ब्रहमा नन्द जलीस

कहा अग़्यार का हक़ में मिरे मंज़ूर मत कीजो

बयाँ अहसनुल्लाह ख़ान

वही दाग़-ए-लाला की बात है कि ब-नाम-ए-हुस्न उधर गई

अज़ीज़ हामिद मदनी

हरम का आईना बरसों से धुँदला भी है हैराँ भी

अज़ीज़ हामिद मदनी

ज़ब्त की हद से हो के गुज़रना सो जाना

अतीक़ इलाहाबादी

बिखरे बिखरे बाल और सूरत खोई खोई

असलम कोलसरी

ये मिरी बज़्म नहीं है लेकिन

आसिफ़ रज़ा

ख़ून आँखों से निकलता ही रहा

अशरफ़ अली फ़ुग़ाँ

अभी कुछ दिन लगेंगे

असग़र नदीम सय्यद

जुनूँ बरसाए पत्थर आसमाँ ने मज़रा-ए-जाँ पर

अरशद अली ख़ान क़लक़

हो रहा है टुकड़े टुकड़े दिल मेरे ग़म-ख़्वार का

अनवर देहलवी

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