मरहम Poetry (page 3)

नाईट-कलब

सलीम बेताब

कब से महव-ए-सफ़र हो

साजिदा ज़ैदी

सोच की लहरों का मजमा' ठीक है

साजिद असर

नज़र नज़र से वो कलियाँ खिला खिला भी गया

सादिक़ नसीम

वक़्त हर ज़ख़्म का मरहम तो नहीं बन सकता

सदा अम्बालवी

अब कहाँ दोस्त मिलें साथ निभाने वाले

सदा अम्बालवी

मेरे अफ़्कार ने जिस शय से जिला पाई है

रियासत अली ताज

चराग़-ए-ज़ीस्त मद्धम है अभी तू नम न कर आँखें

रेनू नय्यर

मुझ को मंज़ूर है मरने पे सुबुक-बारी हो

रशीद लखनवी

कभी ग़ुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह

राना सहरी

मरीज़-ए-हिज्र को सेहत से अब तो काम नहीं

रजब अली बेग सुरूर

और कुछ तेज़ चलीं अब के हवाएँ शायद

रईस सिद्दीक़ी

इक ख़्वाब नींद का था सबब, जो नहीं रहा

इरफ़ान सत्तार

उस को नग़्मों में समेटूँ तो बुका जाने है

इक़बाल मतीन

ईफ़ा-ए-व'अदा आप से ऐ यार हो चुका

इमदाद अली बहर

हम आज-कल हैं नामा-नवीसी की ताव पर

इमदाद अली बहर

आश्ना कोई बा-वफ़ा न मिला

इमदाद अली बहर

छलकती आए कि अपनी तलब से भी कम आए

इब्न-ए-सफ़ी

दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो

इब्न-ए-इंशा

यगानगी में भी दुख ग़ैरियत के सहता हूँ

हुरमतुल इकराम

वो दिल जो था किसी के ग़म का महरम हो गया रुस्वा

हुरमतुल इकराम

कहीं पे माल-ओ-दुनिया की ख़रीदार की बातें हैं

हिना हैदर

दिन रात तुम्हारी यादों से हम ज़ख़्म सँवारा करते हैं

हिदायतुल्लाह ख़ान शम्सी

कब तलक पीवेगा तू तर-दामनों से मिल के मुल

हसरत अज़ीमाबादी

हर ज़ख़्म-ए-कोहना वक़्त के मरहम ने भर दिया

हनीफ़ तरीन

एहसास-ए-ना-रसाई से जिस दम उदास था

हनीफ़ तरीन

वस्ल की शब थी और उजाले कर रक्खे थे

हैदर क़ुरैशी

उस दरबार में लाज़िम था अपने सर को ख़म करते

हैदर क़ुरैशी

रोज़-ए-मौलूद से साथ अपने हुआ ग़म पैदा

हैदर अली आतिश

रफ़्तगाँ का भी ख़याल ऐ अहल-ए-आलम कीजिए

हैदर अली आतिश

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