महफ़िल Poetry (page 17)

कब कहा मैं ने मुझे सारा ज़माना चाहिए

इमरान साग़र

रात चराग़ की महफ़िल में शामिल एक ज़माना था

इमदाद निज़ामी

ठिकाना है कहीं जाएँ कहाँ नाचार बैठे हैं

इम्दाद इमाम असर

सुब्ह-दम रोती जो तेरी बज़्म से जाती है शम्अ

इम्दाद इमाम असर

रोते हैं सुन के कहानी मेरी

इम्दाद इमाम असर

मेरे सर में जो रात चक्कर था

इम्दाद इमाम असर

कब ग़ैर हुआ महव तिरी जल्वागरी का

इम्दाद इमाम असर

झूटे वादों पर तुम्हारी जाएँ क्या

इम्दाद इमाम असर

जफ़ाएँ होती हैं घुटता है दम ऐसा भी होता है

इम्दाद इमाम असर

साक़ी तिरे बग़ैर है महफ़िल से दिल उचाट

इमदाद अली बहर

सब हसीनों में वो प्यारा ख़ूब है

इमदाद अली बहर

ख़ूब-रू सब हैं मगर हूरा-शमाइल एक है

इमदाद अली बहर

इस तरह ज़ीस्त बसर की कोई पुरसाँ न हुआ

इमदाद अली बहर

हम नाक़िसों के दौर में कामिल हुए तो क्या

इमदाद अली बहर

चार दिन है ये जवानी न बहुत जोश में आ

इमदाद अली बहर

यक़ीन से यादों के बारे में कुछ कहा नहीं जा सकता

इफ़्तिख़ार आरिफ़

शोर-ए-दरिया-ए-वफ़ा इशरत-ए-साहिल के क़रीब

इफ़्तिख़ार आज़मी

नाम को भी न किसी आँख से आँसू निकला

इब्राहीम अश्क

बेकल बेकल रहते हो पर महफ़िल के आदाब के साथ

इब्न-ए-इंशा

ये बच्चा किस का बच्चा है

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

दिल पीत की आग में जलता है

इब्न-ए-इंशा

सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो

इब्न-ए-इंशा

मर-मिटे जब से हम उस दुश्मन-ए-दीं पर साहब

हुसैन मजरूह

ज़ौक़-ए-तकल्लुम पर उर्दू ने राह अनोखी खोली है

हुरमतुल इकराम

रहेगा अक़्ल के सीने पे ता-अबद ये दाग़

हुरमतुल इकराम

वक़्त ने रंग बहुत बदले क्या कुछ सैलाब नहीं आए

हिलाल फ़रीद

सब कुछ खो कर मौज उड़ाना इश्क़ में सीखा

हिलाल फ़रीद

मैं तिरा जल्वा तू मेरा दिल है मेरे हम-नशीं

हीरा लाल फ़लक देहलवी

कई सितारे यहाँ टूटते बिखरते हैं

हयात लखनवी

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