महफ़िल Poetry (page 4)

ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

ज़ब्त की कोशिश है जान-ए-ना-तवाँ मुश्किल में है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

यहाँ हर आने वाला बन के इबरत का निशाँ आया

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

तिरे आशुफ़्ता से क्या हाल-ए-बेताबी बयाँ होगा

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

शर्मिंदा किया जौहर-ए-बालिग़-नज़री ने

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

लबरेज़-ए-हक़ीक़त गो अफ़साना-ए-मूसा है

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

किसी तरह दिन तो कट रहे हैं फ़रेब-ए-उम्मीद खा रहा हूँ

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

किसी सूरत से उस महफ़िल में जा कर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

जुदा करेंगे न हम दिल से हसरत-ए-दिल को

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

आह-ए-शब नाला-ए-सहर ले कर

वहशत रज़ा अली कलकत्वी

हर एक गाम पे सज्दा यहाँ रवा होगा

वहीदा नसीम

कहीं शुनवाई नहीं हुस्न की महफ़िल के ख़िलाफ़

वहीद अख़्तर

दफ़्तर-ए-लौह ओ क़लम या दर-ए-ग़म खुलता है

वहीद अख़्तर

खुल गया राज़ छुपी चाह का सब महफ़िल पर

वहाब दानिश

सुकूत-ए-शब सितारों से हवा जब बात करती है

विश्मा ख़ान विश्मा

उजड़ के घर से सर-ए-राह आ के बैठे हैं

वारिस किरमानी

ऐ सबा निकहत-ए-गेसू-ए-मुअंबर लाना

वारिस किरमानी

मिरे शानों पे उन की ज़ुल्फ़ लहराई तो क्या होगा

उनवान चिश्ती

हम हैं बस इतने ही साहिल-आश्ना

उम्मीद फ़ाज़ली

इस महफ़िल में मैं भी क्या बेबाक हुआ

उमैर मंज़र

जब इंसान को अपना कुछ इदराक हुआ

उमैर मंज़र

नूर-जहाँ का मज़ार

तिलोकचंद महरूम

वो दिल कहाँ है अहल-ए-नज़र दिल कहें जिसे

तिलोकचंद महरूम

वही अरमान जैसे जी जो मुश्किल से निकलते हैं

तिलोकचंद महरूम

हैरत-ज़दा मैं उन के मुक़ाबिल में रह गया

तिलोकचंद महरूम

दिल था पहलू में तो कहते थे तमन्ना क्या है

तौसीफ़ तबस्सुम

तू क्यूँ पास से उठ चला बैठे बैठे

मीर तस्कीन देहलवी

बाक़ी सब कुछ फ़ानी है

तारिक़ राशीद दरवेश

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

सारी दुनिया के सितम और मिरा दिल तन्हा

तमन्ना जमाली

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