महफ़िल Poetry (page 6)

आँख जो इश्वा-ए-पुर-कार लिए फिरती है

सय्यद हामिद

जो हो सके तो आप भी कुछ कर दिखाइए

सय्यद फ़ज़लुल मतीन

तसलसुल पाएमाली का मिलेगा

सय्यद अमीन अशरफ़

बहार आती है लेकिन सर में वो सौदा नहीं होता

सय्यद अमीन अशरफ़

होश का अंदाज़ा बे-होशी में है

सय्यद अाग़ा अली महर

हिज्र है दिल में ख़ाक उड़ती है

सय्यद अाग़ा अली महर

साक़िया है तिरी महफ़िल में ख़ुदाओं का हुजूम

सय्यद आबिद अली आबिद

यही था वक़्फ़ तिरी महफ़िल-ए-तरब के लिए

सय्यद आबिद अली आबिद

जो भी मिंजुमला-ए-आशुफ़्ता सरा होता है

सय्यद आबिद अली आबिद

दिल है आईना-ए-हैरत से दो-चार आज की रात

सय्यद आबिद अली आबिद

आम हो फ़ैज़-ए-बहाराँ तो मज़ा आ जाए

सय्यद आबिद अली आबिद

अपने ख़्वाबों को इक दिन सजाते हुए

स्वप्निल तिवारी

सती

सुरूर जहानाबादी

बुलबुल ओ परवाना

सुरूर जहानाबादी

वो बे-रुख़ी कि तग़ाफ़ुल की इंतिहा कहिए

सुरूर बाराबंकवी

दस्त-ओ-पा हैं सब के शल इक दस्त-ए-क़ातिल के सिवा

सुरूर बाराबंकवी

ऐ जुनूँ कुछ तो खुले आख़िर मैं किस मंज़िल में हूँ

सुरूर बाराबंकवी

हर इक महफ़िल में ये ही सोचता हूँ

सुनील कुमार जश्न

उस की जानिब देखते थे और सब ख़ामोश थे

सुलतान रशक

शायरी मज़हर-ए-अहवाल-ए-दरूं है यूँ है

सुलेमान ख़ुमार

तुम किस से मिलने आए हो

सुलैमान अरीब

ये भी शायद तिरा अंदाज़-ए-दिल-आराई है

सुलैमान अरीब

ज़ौक़ पे शौक़ पे मिट जाने को तय्यार उठा

सुलैमान अहमद मानी

तिरे हिरमाँ-नसीबों की भी क्या तक़दीर है साक़ी

सुलैमान आसिफ़

हमारे जैसे ही लोगों से शहर भर गए हैं

सुहैल अख़्तर

नवाह-ए-जाँ में कहीं अबतरी सी लगती है

सुहैल अहमद ज़ैदी

इसी आशिक़ी में पैहम हुई ख़ानुमाँ-ख़राबी

सुहा मुजद्ददी

इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई

सूफ़ी तबस्सुम

तिरी महफ़िल में सोज़-ए-जावेदानी ले के आया हूँ

सूफ़ी तबस्सुम

जान दे कर वफ़ा में नाम किया

सूफ़ी तबस्सुम

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