महफ़िल Poetry (page 7)

इस आलम-ए-वीराँ में क्या अंजुमन-आराई

सूफ़ी तबस्सुम

ये जो काली घटा छाई हुई है

सुदर्शन कुमार वुग्गल

सुनहरा ही सुनहरा वादा-ए-फ़र्दा रहा होगा

सुबोध लाल साक़ी

वफ़ाओं के इरादे वुसअ'त-ए-मंज़िल में रहते हैं

सोज़ बरेलवी

इस सोच में बैठे हैं झुकाए हुए सर हम

सिराज लखनवी

ये वो आज़माइश-ए-सख़्त है कि बड़े बड़े भी निकल गए

सिराज लखनवी

वो ज़कात-ए-दौलत-ए-सब्र भी मिरे चंद अश्कों के नाम से

सिराज लखनवी

आह ये आँसू प्यारे प्यारे

सिराज लखनवी

हुआ हूँ इन दिनों माइल किसी का

सिराज औरंगाबादी

बहुत उदास है दिल जाने माजरा क्या है

सिरज़ अालम ज़ख़मी

बयाबानों पे ज़िंदानों पे वीरानों पे क्या गुज़री

सिकंदर अली वज्द

मैं वो टूटा हुआ तारा जिसे महफ़िल न रास आई

सिद्दीक़ मुजीबी

अजब पागल है दिल कार-ए-जहाँ बानी में रहता है

सिद्दीक़ मुजीबी

जो क़िस्सा था ख़ुद से छुपाया हुआ

शुजा ख़ावर

दश्त को जा तो रहे हो सोच लो कैसा लगेगा

शुजा ख़ावर

बिना जाने किसी के हो गए हम

शोहरत बुख़ारी

तुझे दिल में बसाएँगे तिरे ही ख़्वाब देखेंगे

शमशाद शाद

तमाम ख़ुशियाँ तमाम सपने हम एक दूजे के नाम कर के

शमशाद शाद

याद है अब तक मुझे अहद-ए-जवानी याद है

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

हुआ जब जल्वा-आरा आप का ज़ौक़-ए-ख़ुद-आराई

शिव रतन लाल बर्क़ पूंछवी

अंदोह-ए-बेश-ओ-कम न ग़म-ए-ख़ैर-ओ-शर में है

शिव दयाल सहाब

न जब तक दर्द-ए-इंसाँ से किसी को आगही होगी

शिव चरन दास गोयल ज़ब्त

तमन्ना है यही दिल की वहीं चलिए वहीं चलिए

शेरी भोपाली

कसरत-ए-वहदानियत में हुस्न की तनवीर देख

शेर सिंह नाज़ देहलवी

दिल दिया है हम ने भी वो माह-ए-कामिल देख कर

शेर सिंह नाज़ देहलवी

आँख उस पुर-जफ़ा से लड़ती है

ज़ौक़

फ़स्ल-ए-गुल साथ लिए बाग़ में क्या आती है

शैख़ अली बख़्श बीमार

उस की बातें क्या करते हो वो लफ़्ज़ों का बानी था

शहपर रसूल

मस्लहत के ज़ावियों से किस क़दर अंजान है

शहपर रसूल

कोई साया न कोई हम-साया

शहपर रसूल

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