खुल गया राज़ छुपी चाह का सब महफ़िल पर
नाम ले कर जो मिरा उस से पुकारा न गया
Anwar Masood
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Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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Allama Iqbal
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हर रौशनी की बूँद पे लब रख चुकी है रात
ख़ाक के पुतलों में पत्थर के बदन को वास्ता
इन पर्बतों के बीच थी मस्तूर इक गुफा
थकावटों से बैठ के सफ़र उतारिए कहीं
पस्पाई
एक आदमी
जंगलों में घूमते फिरते हैं शहरों के फ़क़ीह
कई भयानक काली रातों के अँधियारे में
वो रंग का हुजूम सा वो ख़ुशबुओं की भीड़ सी
उसूल के जज़ीरे
जब सफ़र की धूप में मुरझा के हम दो पल रुके