नाम Poetry (page 42)

करें सलाम उसे तो कोई जवाब न दे

इब्राहीम अश्क

गुलशन में ले के चल किसी सहरा में ले के चल

इब्राहीम अश्क

इस शहर में किस से मिलें हम से तो छूटीं महफ़िलें

इब्न-ए-इंशा

एक से एक जुनूँ का मारा इस बस्ती में रहता है

इब्न-ए-इंशा

आन के इस बीमार को देखे तुझ को भी तौफ़ीक़ हुई

इब्न-ए-इंशा

ये सराए है

इब्न-ए-इंशा

ये बातें झूटी बातें हैं

इब्न-ए-इंशा

सब माया है

इब्न-ए-इंशा

पिछले-पहर के सन्नाटे में

इब्न-ए-इंशा

लब पर नाम किसी का भी हो

इब्न-ए-इंशा

कल हम ने सपना देखा है

इब्न-ए-इंशा

इस बस्ती के इक कूचे में

इब्न-ए-इंशा

दिल-आशोब

इब्न-ए-इंशा

ऐ मतवालो! नाक़ों वालो!!

इब्न-ए-इंशा

सुनते हैं फिर छुप छुप उन के घर में आते जाते हो

इब्न-ए-इंशा

लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए

इब्न-ए-इंशा

कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा

इब्न-ए-इंशा

जंगल जंगल शौक़ से घूमो दश्त की सैर मुदाम करो

इब्न-ए-इंशा

इस शहर के लोगों पे ख़त्म सही ख़ु-तलअ'ती-ओ-गुल-पैरहनी

इब्न-ए-इंशा

'इंशा'-जी है नाम उन्ही का चाहो तो तुम से मिलवाएँ

इब्न-ए-इंशा

देख हमारी दीद के कारन कैसा क़ाबिल-ए-दीद हुआ

इब्न-ए-इंशा

और तो कोई बस न चलेगा हिज्र के दर्द के मारों का

इब्न-ए-इंशा

सुबूत-ए-जुर्म न मिलने का फिर बहाना किया

हुसैन ताज रिज़वी

मैं उस की आँख में वो मेरे दिल की सैर में था

हुसैन ताज रिज़वी

वो आलम है कि हर मौज-ए-नफ़स है रूह पर भारी

हुरमतुल इकराम

लोग तो इक मंज़र हैं तख़्त-नशीनों की ख़ातिर

हुमैरा रहमान

तुम्हारे इश्क़ पे दिल को जो मान था न रहा

हुमैरा राहत

कहीं पे माल-ओ-दुनिया की ख़रीदार की बातें हैं

हिना हैदर

मुद्दत के बाद

हिमायत अली शाएर

हारून की आवाज़

हिमायत अली शाएर

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