नाम Poetry (page 41)
यूँ है तिरी तलाश पे अब तक यक़ीं मुझे
इफ़्तिख़ार नसीम
जिला-वतन हूँ मिरा घर पुकारता है मुझे
इफ़्तिख़ार नसीम
तुम्हें भी चाहा, ज़माने से भी वफ़ा की थी
इफ़्तिख़ार मुग़ल
कभी कभी तो ये हालत भी की मोहब्बत ने
इफ़्तिख़ार मुग़ल
वो मेरे नाम की निस्बत से मो'तबर ठहरे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
वो जिस के नाम की निस्बत से रौशनी था वजूद
इफ़्तिख़ार आरिफ़
कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या
इफ़्तिख़ार आरिफ़
जो हर्फ़-ए-हक़ की हिमायत में हो वो गुम-नामी
इफ़्तिख़ार आरिफ़
शहर इल्म के दरवाज़े पर
इफ़्तिख़ार आरिफ़
पस च-बायद-कर्द
इफ़्तिख़ार आरिफ़
हवाएँ अन-पढ़ हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
एक उदास शाम के नाम
इफ़्तिख़ार आरिफ़
बारहवाँ खिलाड़ी
इफ़्तिख़ार आरिफ़
बैलन्स-शीट
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ज़रा सी देर को आए थे ख़्वाब आँखों में
इफ़्तिख़ार आरिफ़
ये अब खुला कि कोई भी मंज़र मिरा न था
इफ़्तिख़ार आरिफ़
समुंदर इस क़दर शोरीदा-सर क्यूँ लग रहा है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
रविश में गर्दिश-ए-सय्यारगाँ से अच्छी है
इफ़्तिख़ार आरिफ़
कहाँ के नाम ओ नसब इल्म क्या फ़ज़ीलत क्या
इफ़्तिख़ार आरिफ़
इन्हीं में जीते इन्हीं बस्तियों में मर रहते
इफ़्तिख़ार आरिफ़
हम अहल-ए-जब्र के नाम-ओ-नसब से वाक़िफ़ हैं
इफ़्तिख़ार आरिफ़
फ़ज़ा में वहशत-ए-संग-ओ-सिनाँ के होते हुए
इफ़्तिख़ार आरिफ़
दयार-ए-नूर में तीरा-शबों का साथी हो
इफ़्तिख़ार आरिफ़
है ये मर मिटने का इनआ'म तुम्हें क्या मा'लूम
इफ़्फ़त अब्बास
वो गुल वो ख़्वाब-शार भी नहीं रहा
इदरीस बाबर
मतला ग़ज़ल का ग़ैर ज़रूरी क्या क्यूँ कब का हिस्सा है
इदरीस बाबर
मैं उसे सोचता रहा या'नी
इदरीस बाबर
मैं कुछ दिनों में उसे छोड़ जाने वाला था
इदरीस बाबर
करते फिरते हैं ग़ज़ालाँ तिरा चर्चा साहब
इदरीस बाबर
अब मसाफ़त में तो आराम नहीं आ सकता
इदरीस बाबर
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