नाम Poetry (page 48)

वो उट्ठे हैं तेवर बदलते हुए

हबीब मूसवी

उस से क्या छुप सके बनाई बात

हबीब मूसवी

शब कि मुतरिब था शराब-ए-नाब थी पैमाना था

हबीब मूसवी

किसी की जुब्बा-साई से कभी घिसता नहीं पत्थर

हबीब मूसवी

है नौ-जवानी में ज़ोफ़-ए-पीरी बदन में रअशा कमर में ख़म है

हबीब मूसवी

बना के आईना-ए-तसव्वुर जहाँ दिल-ए-दाग़-दार देखा

हबीब मूसवी

उस को देखा तो नाम भूल गया

हबीब कैफ़ी

उन निगाहों को अजब तर्ज़-ए-कलाम आता है

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

दुनिया को रू-शनास-ए-हक़ीक़त न कर सके

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

उमीद-ओ-बीम के आलम में दिल दहलता है

हबाब हाश्मी

फ़लाह-ए-आदमियत में सऊबत सह के मर जाना

गुलज़ार देहलवी

तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है

गुलज़ार बुख़ारी

नज़्म

गुलज़ार

डाइरी

गुलज़ार

किसी की याद का चेहरा

गुलनाज़ कौसर

हयात-ए-रवाँ

गुलनाज़ कौसर

हमारा नाम पुकारे हमारे घर आए

गुलनार आफ़रीन

यूँ तो दिल हर कदाम रखता है

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

ये दिल ही जल्वा-गाह है उस ख़ुश-ख़िराम का

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

बा'द-ए-मकीं मकाँ का गर बाम रहा तो क्या हुआ

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

कितने दरिया इस नगर से बह गए

गुलाम जीलानी असग़र

नीम बिस्मिल की क्या अदा है ये

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

खोल दी है ज़ुल्फ़ किस ने फूल से रुख़्सार पर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

दुआएँ माँगीं हैं मुद्दतों तक झुका के सर हाथ उठा उठा कर

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

अपना हर उज़्व चश्म-ए-बीना है

गोया फ़क़ीर मोहम्मद

मुंतज़िर आँखें हैं मेरी शाम से

गोविन्द गुलशन

फ़ितरत में आदमी की है मुबहम सा एक ख़ौफ़

गोपाल मित्तल

रंगीनी-ए-हवस का वफ़ा नाम रख दिया

गोपाल मित्तल

पहले उस ने मुझे चुनवा दिया दीवार के साथ

ग़ुलाम मुर्तज़ा राही

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