नाम Poetry (page 50)

किया बदनाम इक आलम ने 'ग़मगीं' पाक-बाज़ी में

ग़मगीन देहलवी

मिरा उस के पस-ए-दीवार घर होता तो क्या होता

ग़मगीन देहलवी

कभी गुमान कभी ए'तिबार बन के रहा

ग़ालिब अयाज़

हवा के होंट खुलें साअत-ए-कलाम तो आए

ग़ालिब अयाज़

सदा ब-सहरा

ग़ालिब अहमद

ज़बाँ पे बार-ए-ख़ुदाया ये किस का नाम आया

ग़ालिब

ख़त लिखेंगे गरचे मतलब कुछ न हो

ग़ालिब

देखिए लाती है उस शोख़ की नख़वत क्या रंग

ग़ालिब

छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ

ग़ालिब

शिकवे के नाम से बे-मेहर ख़फ़ा होता है

ग़ालिब

क़तरा-ए-मय बस-कि हैरत से नफ़स-परवर हुआ

ग़ालिब

नवेद-ए-अम्न है बेदाद-ए-दोस्त जाँ के लिए

ग़ालिब

नहीं है ज़ख़्म कोई बख़िये के दर-ख़ुर मिरे तन में

ग़ालिब

की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं

ग़ालिब

कहते हो न देंगे हम दिल अगर पड़ा पाया

ग़ालिब

हुई ताख़ीर तो कुछ बाइस-ए-ताख़ीर भी था

ग़ालिब

हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं

ग़ालिब

घर जब बना लिया तिरे दर पर कहे बग़ैर

ग़ालिब

ग़ैर लें महफ़िल में बोसे जाम के

ग़ालिब

गई वो बात कि हो गुफ़्तुगू तो क्यूँकर हो

ग़ालिब

बाज़ीचा-ए-अतफ़ाल है दुनिया मिरे आगे

ग़ालिब

आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए

ग़ालिब

वो टुकड़ा रात का बिखरा हुआ सा

गौतम राजऋषि

लम्हा गुज़र गया है कि अर्सा गुज़र गया

गौतम राजऋषि

इस बात को वैसे तो छुपाया न गया है

गौतम राजऋषि

जाती रुत से प्यार करोगे

गौहर होशियारपुरी

इक साया-ए-शाम याद आया

गौहर होशियारपुरी

दिल तमाम आईने तीरा कौन रौशन कौन

गौहर होशियारपुरी

अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई

गणेश बिहारी तर्ज़

अहल-ए-दिल के वास्ते पैग़ाम हो कर रह गई

गणेश बिहारी तर्ज़

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