हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं

हैराँ हूँ दिल को रोऊँ कि पीटूँ जिगर को मैं

मक़्दूर हो तो साथ रखूँ नौहागर को मैं

छोड़ा न रश्क ने कि तिरे घर का नाम लूँ

हर इक से पूछता हूँ कि जाऊँ किधर को मैं

जाना पड़ा रक़ीब के दर पर हज़ार बार

ऐ काश जानता न तिरे रह-गुज़र को मैं

है क्या जो कस के बाँधिए मेरी बला डरे

क्या जानता नहीं हूँ तुम्हारी कमर को मैं

लो वो भी कहते हैं कि ये बे-नंग-ओ-नाम है

ये जानता अगर तो लुटाता न घर को मैं

चलता हूँ थोड़ी दूर हर इक तेज़-रौ के साथ

पहचानता नहीं हूँ अभी राहबर को मैं

ख़्वाहिश को अहमक़ों ने परस्तिश दिया क़रार

क्या पूजता हूँ उस बुत-ए-बेदाद-गर को मैं

फिर बे-ख़ुदी में भूल गया राह-ए-कू-ए-यार

जाता वगरना एक दिन अपनी ख़बर को मैं

अपने पे कर रहा हूँ क़यास अहल-ए-दहर का

समझा हूँ दिल-पज़ीर मता-ए-हुनर को मैं

'ग़ालिब' ख़ुदा करे कि सवार-ए-समंद-नाज़

देखूँ अली बहादुर-ए-आली-गुहर को मैं

(2682) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Hairan Hun Dil Ko Roun Ki PiTun Jigar Ko Main In Hindi By Famous Poet Mirza Ghalib. Hairan Hun Dil Ko Roun Ki PiTun Jigar Ko Main is written by Mirza Ghalib. Complete Poem Hairan Hun Dil Ko Roun Ki PiTun Jigar Ko Main in Hindi by Mirza Ghalib. Download free Hairan Hun Dil Ko Roun Ki PiTun Jigar Ko Main Poem for Youth in PDF. Hairan Hun Dil Ko Roun Ki PiTun Jigar Ko Main is a Poem on Inspiration for young students. Share Hairan Hun Dil Ko Roun Ki PiTun Jigar Ko Main with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.