घृणा Poetry (page 2)

हम अपनी ज़िंदगी के लिए शुक्र-गुज़ार हैं

सय्यद काशिफ़ रज़ा

बदल के हम ने तरीक़ा ख़त-ओ-किताबत का

सय्यद आरिफ़ अली

कल पहली बार उस से इनायत सी हो गई

सय्यद अनवार अहमद

तेरी याद में रोते रोते तुझ जैसा हो जाएगा

सुलतान सुबहानी

मुद्दत हुई राहत भरा मंज़र नहीं उतरा

सुलेमान ख़ुमार

दिल में ख़यालात-ए-रंगीं गुज़रते हैं जिऊँ बॉस फूलों के रंगों में रहिए

सिराज औरंगाबादी

न देखा जामा-ए-ख़ुद-रफ़्तगी उतार के भी

सिद्दीक़ शाहिद

दिल में नफ़रत हो तो चेहरे पे भी ले आता हूँ

शुजा ख़ावर

बिछड़ गए थे किसी रोज़ खेल खेल में हम

शोज़ेब काशिर

तमाम ख़ुशियाँ तमाम सपने हम एक दूजे के नाम कर के

शमशाद शाद

मुझ को ज़िंदा रहने का इक जज़्बा आ के मार गया

शहज़ाद रज़ा लम्स

नफ़रत और मोहब्बत

शीरीं अहमद

हुई या मुझ से नफ़रत या कुछ इस में किब्र-ओ-नाज़ आया

शौक़ क़िदवाई

मोहब्बत की इंतिहा पर

शारिक़ कैफ़ी

गुलज़ार में वो रुत भी कभी आ के रहेगी

शरीफ़ कुंजाही

पर्दा-ए-रुख़ क्या उठा हर-सू उजाले हो गए

शारिब मौरान्वी

अपनी हस्ती को अंधे कुएँ में गिराना नहीं चाहता

शनावर इस्हाक़

प्यार में उस ने तो दानिस्ता मुझे खोया था

शकील शम्सी

ज़लज़ला

शकील बदायुनी

हंगामा-ए-ग़म से तंग आ कर इज़हार-ए-मसर्रत कर बैठे

शकील बदायुनी

बीत गया हंगाम-ए-क़यामत रोज़-ए-क़यामत आज भी है

शकील बदायुनी

ख़्वाब-ए-गुल-रंग के अंजाम पे रोना आया

शकेब जलाली

ग़म-ए-हयात की लज़्ज़त बदलती रहती है

शकेब जलाली

ज़िंदा रहने का ये एहसास

शहरयार

सभी को ग़म है समुंदर के ख़ुश्क होने का

शहरयार

ये ज़रूरत है तो फिर इस को ज़रूरत से न देख

शाहिद कमाल

हर परी-वश का ए'तिबार करो

शाहिद इश्क़ी

मेरे दिल में घर भी बनाता रहता है

शाहिद ग़ाज़ी

यादों की दीवार गिराता रहता हूँ

शाहबाज़ रिज़्वी

छुप-छुप के तू 'शाद' उस से मुलाक़ात करे है

शाद बिलगवी

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