नज़र Poetry (page 74)

और ऐ चश्म-ए-तरब बादा-ए-गुलफ़ाम अभी

हबीब अहमद सिद्दीक़ी

हैं धब्बे तेग़-ए-क़ातिल के जिसे धोने नहीं देते

हबीब आरवी

तमाम रात बुझेंगे न मेरे घर के चराग़

हबाब तिर्मिज़ी

ख़ुश-नज़र है न ख़ुश-ख़याल है ये

हबाब तिर्मिज़ी

तिश्ना-ए-तकमील है वहशत का अफ़्साना अभी

ग्यान चन्द मंसूर

क्या बताएँ आप से क्या हस्ती-ए-इंसान है

ग्यान चन्द

क्या बताएँ आप से क्या हस्ती-ए-इंसान है

ग्यान चन्द

ज़ाब्ते और ही मिस्दाक़ पे रक्खे हुए हैं

गुलज़ार बुख़ारी

तिरी तलब ने फ़लक पे सब के सफ़र का अंजाम लिख दिया है

गुलज़ार बुख़ारी

काँच के पार तिरे हाथ नज़र आते हैं

गुलज़ार

तआक़ुब

गुलज़ार

किताबें

गुलज़ार

इमेजेज़

गुलज़ार

गिरहें

गुलज़ार

धूप लगे आकाश पे जब

गुलज़ार

जब भी आँखों में अश्क भर आए

गुलज़ार

ऐसा ख़ामोश तो मंज़र न फ़ना का होता

गुलज़ार

न कोई दीन होता है न कोई ज़ात होती है

गुलशन बरेलवी

न पूछ ऐ मिरे ग़म-ख़्वार क्या तमन्ना थी

गुलनार आफ़रीन

हमारा नाम पुकारे हमारे घर आए

गुलनार आफ़रीन

आँख में अश्क लिए ख़ाक लिए दामन में

गुलनार आफ़रीन

शजर बाग़-ए-जहाँ का था जहाँ तक सब समर लाया

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

आँखों का ख़ुदा ही है ये आँसू की है गर मौज

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

आबरू उल्फ़त में अगर चाहिए

ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी

जहान-ए-रंग-ओ-बू कितना हसीं है

ग़ुलाम नबी हकीम

तू सरहद-ए-ख़याल से आगे गुज़र गया

गुलाम जीलानी असग़र

जफ़ा-ए-दिल-शिकन

ग़ुलाम दस्तगीर मुबीन

तूफ़ान समुंदर के न दरिया के भँवर देख

गुहर खैराबादी

मैं इक मुसाफ़ि-ए-तन्हा मिरा सफ़र तन्हा

गुहर खैराबादी

जिस तरफ़ भी देखिए साया नहीं

गुहर खैराबादी

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