नज़र Poetry (page 72)

शैख़ का ख़ौफ़ हमें हश्र का धड़का हम को

हफ़ीज़ जालंधरी

मज़हका आओ उड़ाएँ इश्क़-ए-बे-बुनियाद का

हफ़ीज़ जालंधरी

मस्तों पे उँगलियाँ न उठाओ बहार में

हफ़ीज़ जालंधरी

कोई दवा न दे सके मशवरा-ए-दुआ दिया

हफ़ीज़ जालंधरी

कभी ज़मीं पे कभी आसमाँ पे छाए जा

हफ़ीज़ जालंधरी

हम ही में थी न कोई बात याद न तुम को आ सके

हफ़ीज़ जालंधरी

दूर से आँखें दिखाती है नई दुनिया मुझे

हफ़ीज़ जालंधरी

ये दिलकशी कहाँ मिरी शाम-ओ-सहर में थी

हफ़ीज़ होशियारपुरी

नज़र से हद्द-ए-नज़र तक तमाम तारीकी

हफ़ीज़ होशियारपुरी

राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचे

हफ़ीज़ होशियारपुरी

न पूछ क्यूँ मिरी आँखों में आ गए आँसू

हफ़ीज़ होशियारपुरी

कुछ इस तरह से नज़र से गुज़र गया कोई

हफ़ीज़ होशियारपुरी

कुछ इस तरह से नज़र से गुज़र गया कोई

हफ़ीज़ होशियारपुरी

कहाँ कहाँ न तसव्वुर ने दाम फैलाए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

आज उन्हें कुछ इस तरह जी खोल कर देखा किए

हफ़ीज़ होशियारपुरी

वफ़ा नज़र नहीं आती कहीं ज़माने में

हफ़ीज़ बनारसी

इश्क़ में मारका-ए-क़ल्ब-ओ-नज़र क्या कहिए

हफ़ीज़ बनारसी

मुद्दत की तिश्नगी का इनआ'म चाहता हूँ

हफ़ीज़ बनारसी

कोई बतलाए कि ये तुर्फ़ा तमाशा क्यूँ है

हफ़ीज़ बनारसी

जो नज़र से बयान होती है

हफ़ीज़ बनारसी

जब तसव्वुर में कोई माह-जबीं होता है

हफ़ीज़ बनारसी

इश्क़ में हर नफ़स इबादत है

हफ़ीज़ बनारसी

गुमराह कह के पहले जो मुझ से ख़फ़ा हुए

हफ़ीज़ बनारसी

इक शगुफ़्ता गुलाब जैसा था

हफ़ीज़ बनारसी

भागते सायों के पीछे ता-ब-कै दौड़ा करें

हफ़ीज़ बनारसी

वापसी

हबीब तनवीर

तुम्हारे गाँव से जो रास्ता निकलता है

हबीब तनवीर

ख़ुदा हमारा है

हबीब जालिब

ज़र्रे ही सही कोह से टकरा तो गए हम

हबीब जालिब

तू रंग है ग़ुबार हैं तेरी गली के लोग

हबीब जालिब

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