भाले Poetry (page 2)

सिपाह-ए-शाम के नेज़े पे आफ़्ताब का सर

इफ़्तिख़ार आरिफ़

हरीम-ए-लफ़्ज़ में किस दर्जा बे-अदब निकला

इफ़्तिख़ार आरिफ़

ठहरेगा वही रन में जो हिम्मत का धनी है

हुरमतुल इकराम

मुझ को कोई भी सिला मिलने में दुश्वारी न थी

हसन नईम

आसार-ए-क़दीमा से निकला एक नविश्ता

हसन अब्बास रज़ा

ये मुलाक़ात मुलाक़ात नहीं होती है

हफ़ीज़ जालंधरी

ज़िंदगी की रौशनी के इस्तिआरे ख़्वाब हैं

गुफ़्तार ख़याली

अजब था ज़ोम कि बज़्म-ए-अज़ा सजाएँगे

ग़ुफ़रान अमजद

आमद-ए-ख़त से हुआ है सर्द जो बाज़ार-ए-दोस्त

ग़ालिब

हमारी फ़त्ह के अंदाज़ दुनिया से निराले हैं

फ़सीह अकमल

ग़ुबार-ए-तंग-ज़ेहनी सूरत-ए-ख़ंजर निकलता है

फ़सीह अकमल

पड़ा था लिखना मुझे ख़ुद ही मर्सिया मेरा

फ़रियाद आज़र

मैं मो'तबर हूँ इश्क़ मिरा मो'तबर नहीं

फ़ारूक़ अंजुम

अब धूप मुक़द्दर हुई छप्पर न मिलेगा

फ़ारूक़ अंजुम

मुझ को शिकस्तगी का क़लक़ देर तक रहा

बेकल उत्साही

निशान-ए-ज़ख़्म पे निश्तर-ज़नी जो होने लगी

बद्र-ए-आलम ख़लिश

सिफ़र

अज़ीज़ तमन्नाई

नज़्र-ए-अलीगढ़

असरार-उल-हक़ मजाज़

अँधेरी रात का मुसाफ़िर

असरार-उल-हक़ मजाज़

मुझे भी वहशत-ए-सहरा पुकार मैं भी हूँ

असअ'द बदायुनी

तलातुम है न जाँ-लेवा भँवर है

अरशद कमाल

समुंदर से किसी लम्हे भी तुग़्यानी नहीं जाती

अरशद कमाल

रूह के जलते ख़राबे का मुदावा भी नहीं

आरिफ़ अब्दुल मतीन

पढ़ने भी न पाए थे कि वो मिट भी गई थी

अनवर मसूद

पढ़ने भी न पाए थे कि वो मिट भी गई थी

अनवर मसूद

क़याम-गाह न कोई न कोई घर मेरा

अनवर जलालपुरी

न मेरे हाथ से छुटना है मेरे नेज़े को

अनीस अशफ़ाक़

इसी ज़मीं पे इसी आसमाँ में रहना है

अनीस अशफ़ाक़

ज़िंदगानी जावेदानी भी नहीं

अमजद इस्लाम अमजद

बसर होना बहुत दुश्वार सा है

अमीर क़ज़लबाश

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