निशान Poetry (page 5)
रात काफ़ी लम्बी थी दूर तक था तन्हा मैं
फ़ारूक़ शफ़क़
चादर और चार-दीवारी
फ़हमीदा रियाज़
राहत कहाँ नसीब थी जो अब कहीं नहीं
दत्तात्रिया कैफ़ी
भूक में दबे बचपन
दर्शिका वसानी
हमारे सब्र का इक इम्तिहान बाक़ी है
चित्रांश खरे
जो न कट सका वो निशान था किसी ज़ख़्म का
बुशरा हाश्मी
सर-ए-दश्त दिल जो सराब था कोई ख़्वाब था
बुशरा हाश्मी
हर-चंद मेरे हाल से वो बे-ख़बर नहीं
बासिर सुल्तान काज़मी
ऐम्बुलेंस
बलराज कोमल
ये ग़लत है ऐ दिल-ए-बद-गुमाँ कि वहाँ किसी का गुज़र नहीं
अज़ीज़ लखनवी
इंतिहा-ए-इश्क़ हो यूँ इश्क़ में कामिल बनो
अज़ीज़ लखनवी
किसी जनम में जो मेरा निशाँ मिला था उसे
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
टटोलता हुआ कुछ जिस्म ओ जान तक पहुँचा
अज़ीज़ बानो दाराब वफ़ा
क़दम क़दम निशान ढूँढता रहा
अज़हर अब्बास
ये और बात है कि मदावा-ए-ग़म न था
अज़ीम मुर्तज़ा
लहरों में बदन उछालते हैं
अय्यूब ख़ावर
तेरा ही निशान-ए-पा रहा हूँ मैं
अतीक़ुल्लाह
चराग़ हाथों के बुझ रहे हैं सितारा हर रह-गुज़र में रख दे
अतीक़ुल्लाह
अगर यक़ीन न रखते गुमान तो रखते
अतहर नासिक
बुझ गए मंज़र उफ़ुक़ पर हर निशाँ मद्धम हुआ
असलम महमूद
ज़मीं कहीं है मिरी और आसमान कहीं
अासिफ़ शफ़ी
यहीं कहीं कोई आवाज़ दे रहा था मुझे
अशफ़ाक़ हुसैन
बे-निशान क़दमों की कहकशाँ पकड़ते हैं
असग़र मेहदी होश
तू एक नाम है मगर सदा-ए-ख़्वाब की तरह
असग़र गोंडवी
क्यूँ किसी रह-रौ से पूछूँ अपनी मंज़िल का पता
आरज़ू लखनवी
हिन्दोस्तान मेरा
अर्श मलसियानी
इक बे-निशान हर्फ़-ए-सदा की तरफ़ न देख
अरमान नज्मी
बराए-नाम सही कोई मेहरबान तो है
अक़ील शादाब
मैं और मेरी तन्हाई
अंजुम सलीमी
एक महबूस नज़्म
अंजुम सलीमी
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