नूर Poetry (page 11)

यूँ तो हर एक शख़्स ही तालिब समर का है

सादिक़ नसीम

किस मुँह से ज़िंदगी को वो रख़्शंदा कह सकें

सादिक़ नसीम

हर शख़्स को ऐसे देखता हूँ

सादिक़ नसीम

वाक़िफ़ ख़ुद अपनी चश्म-ए-गुरेज़ाँ से कौन है

साबिर ज़फ़र

किसी तौर हो न पिन्हाँ तिरा रंग-ए-रू-सियाही

साबिर ज़फ़र

इक शक्ल बे-इरादा सर-ए-बाम आ गई

साबिर वसीम

ग़मों से अपने कोई शख़्स चूर होता है

सबीहा सबा, पाकिस्तान

अजब सी बे-कली से चूर कोई

सबीहा सबा, पाकिस्तान

नग़्मा-ज़न है नज़र-ए-बे-आवाज़

सबा नक़वी

जब इश्क़ था तो दिल का उजाला था दहर में

सबा अकबराबादी

दिल में हो गर ख़्वाहिश-ए-तस्वीर-ए-इबरत देखना

सअादत बाँदवी

मोम पिघलाता रहा तेरा ख़याल

रुख़साना नूर

तो मिल भी जाए तो फिर भी तुझे तलाश करूँ

रूही कंजाही

पुर-हौल ख़राबों से शनासाई मिरी है

रूही कंजाही

ताख़ीर आ पड़ी जो बदन के ज़ुहूर में

रियाज़ लतीफ़

पाया जो तुझे तो खो गए हम

रियाज़ ख़ैराबादी

नज़र आती है दूर की सूरत

रियाज़ ख़ैराबादी

कल क़यामत है क़यामत के सिवा क्या होगा

रियाज़ ख़ैराबादी

इश्क़ में दिल-लगी सी रहती है

रियाज़ ख़ैराबादी

अदू ग़ैर ने तुझ को दिलबर बनाया

रिन्द लखनवी

लम्हा लम्हा शुमार करता हूँ

रिफ़अत सुलतान

तजस्सुस

रिफ़अत सरोश

नज्म-ए-सहर

रिफ़अत सरोश

मासूम ख़्वाहिशों की पशीमानियों में था

रियाज़ मजीद

हम फ़लक के आदमी थे साकिनान-ए-क़र्या-ए-महताब थे

रियाज़ मजीद

क्या से क्या हो गई इस दौर में हालत घर की

रहबर जौनपूरी

कैफ़ नसीब अब कहाँ ग़ुंचों के भी जमाल में

रज़ा जौनपुरी

है ज़ेर-ए-ज़मीं साया तो बाला-ए-ज़मीं धूप

रौनक़ टोंकवी

दिल तक हो चाक तेग़ जो सर पर लगाइए

रौनक़ टोंकवी

उस का ख़याल आते ही मंज़र बदल गया

रउफ़ रज़ा

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