अजब सी बे-कली से चूर कोई
कुछ अपने दिल से है मजबूर कोई
कभी ऐसी अनोखी सोच उभरे
कि जैसे सोच पर मा'मूर कोई
वो जिन के दम से रौशन ज़िंदगी है
दिलों में उन के होगा नूर कोई
तुम्हें कैसे भुलाया जा सकेगा
यहाँ ऐसा नहीं दस्तूर कोई
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ग़मों से अपने कोई शख़्स चूर होता है
जब कभी हादसात ने मारा
दिल में आ जा दिलबर साईं
क़लम को इस लिए तलवार करना
जान गए तो मान लिया
तू नहीं है तो मिरी शाम अकेली चुप है
अगर नहीं है इजाज़त सवाल मत करना
ये दिल की दास्तान है कि दिल ग़ुलाम कर दिया
इक तिरी याद से यादों के ख़ज़ाने निकले
जो भी होगा वार देखा जाएगा