उदासी Poetry (page 2)

जिस का बदन है ख़ुश्बू जैसा जिस की चाल सबा सी है

यूसुफ़ ज़फ़र

ऐ बे-ख़बरी जी का ये क्या हाल है कल से

यूसुफ़ ज़फ़र

पढ़ चुके हैं निसाब-ए-तंहाई

यशब तमन्ना

हल्की सी ख़लिश दिल में निगाहों में उदासी

वासिफ़ देहलवी

कहते हैं सर-ए-राह मुनासिब नहीं मिलना

वासिफ़ देहलवी

अंधेरा ज़ेहन का सम्त-ए-सफ़र जब खोने लगता है

वसीम बरेलवी

बदले हुए हालात से मायूस न होना

वाक़िफ़ राय बरेलवी

खंडर आसेब और फूल

वहीद अख़्तर

हाथ पर हाथ रख के क्यूँ बैठूँ

विकास शर्मा राज़

फ़िक्र का कारोबार था मुझ में

विकास शर्मा राज़

ज़ेहन के कैनवस को फैला कर

उमर फ़रहत

एक तारीख़ मुक़र्रर पे तो हर माह मिले

उमैर नजमी

कभी किसी ने जो दिल दुखाया तो दिल को समझा गई उदासी

त्रिपुरारि

सिसकती मज़लूमियत के नाम

तारिक़ क़मर

हवा रुकी है तो रक़्स-ए-शरर भी ख़त्म हुआ

तारिक़ क़मर

मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर

तहज़ीब हाफ़ी

ये एक बात समझने में रात हो गई है

तहज़ीब हाफ़ी

किसे ख़बर है कि उम्र बस उस पे ग़ौर करने में कट रही है

तहज़ीब हाफ़ी

हम किस को दिखाते शब-ए-फ़ुर्क़त की उदासी

तअशशुक़ लखनवी

महफ़िल से उठाने के सज़ा-वार हमीं थे

तअशशुक़ लखनवी

हाल मौसम का ही पूछेगा वो जब पूछेगा

सय्यदा शान-ए-मेराज

मुँह अँधेरे तेरी यादों से निकलना है मुझे

स्वप्निल तिवारी

मेरे होंटों को छुआ चाहती है

स्वप्निल तिवारी

किरन इक मो'जिज़ा सा कर गई है

स्वप्निल तिवारी

धूप के भीतर छुप कर निकली

स्वप्निल तिवारी

अजब सी बद-हवासी छा रही है

सुनील कुमार जश्न

मिरे चारों तरफ़ ये साज़िश-ए-तस्ख़ीर कैसी है

सुल्तान अख़्तर

कुछ नहीं है तो ये अंदेशा ये डर कैसा है

सुलेमान ख़ुमार

एक इक क़तरा जोड़ कर रक्खा

सोनरूपा विशाल

मैं जिस दिन से अकेली हो गई हूँ

सिया सचदेव

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