हम किस को दिखाते शब-ए-फ़ुर्क़त की उदासी
सब ख़्वाब में थे रात को बेदार हमीं थे
Wasi Shah
Allama Iqbal
Anwar Masood
Gulzar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(794) Peoples Rate This
सू-ए-दयार ख़ंदा-ज़न वो यार-ए-जानी फिर गया
जिस तरफ़ बैठते थे वस्ल में आप
ता-सहर की है फ़ुग़ाँ जान के ग़ाफ़िल मुझ को
बार-ए-ख़ातिर ही अगर है तो इनायत कीजे
जलूँगा मैं कि दिल उस बुत का ग़ैर पर आया
मुँह जो फ़ुर्क़त में ज़र्द रहता है
चिराग़-दाग़ मैं दिन से जलाए बैठा हूँ
हर तरफ़ हश्र में झंकार है ज़ंजीरों की
न डरे बर्क़ से दिल की है कड़ी मेरी आँख
पड़ गई क्या निगह-ए-मस्त तिरे साक़ी की
क़ाफ़िले रात को आते थे उधर जान के आग