उठो Poetry (page 15)

सारा पर्दा है दुई का जो ये पर्दा उठ जाए

अमीर मीनाई

फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया

अमीर मीनाई

नावक-ए-नाज़ से मुश्किल है बचाना दिल का

अमीर मीनाई

पूछा न जाएगा जो वतन से निकल गया

अमीर मीनाई

दिल जुदा माल जुदा जान जुदा लेते हैं

अमीर मीनाई

शब थी बे-ख़्वाब इक आरज़ू देर तक

अंबरीन हसीब अंबर

ईंट दीवार से जब कोई खिसक जाती है

अल्ताफ़ परवाज़

मुनाजात-ए-बेवा

अल्ताफ़ हुसैन हाली

नया शिवाला

अल्लामा इक़बाल

मोहब्बत

अल्लामा इक़बाल

जवाब-ए-शिकवा

अल्लामा इक़बाल

एक आरज़ू

अल्लामा इक़बाल

मुझे आह-ओ-फ़ुग़ान-ए-नीम-शब का फिर पयाम आया

अल्लामा इक़बाल

गर्म-ए-फ़ुग़ाँ है जरस उठ कि गया क़ाफ़िला

अल्लामा इक़बाल

दामन झटक के वादी-ए-ग़म से गुज़र गया

अली सरदार जाफ़री

तीन शराबी

अली सरदार जाफ़री

गुफ़्तुगू (हिन्द पाक दोस्ती के नाम)

अली सरदार जाफ़री

दो चराग़

अली सरदार जाफ़री

बैठे हैं जहाँ साक़ी पैमाना-ए-ज़र ले कर

अली सरदार जाफ़री

दबी आवाज़ में करती थी कल शिकवे ज़मीं मुझ से

अली जव्वाद ज़ैदी

आँखों में अश्क भर के मुझ से नज़र मिला के

अली जव्वाद ज़ैदी

ज़िंदगी क्या है जो दिल हो तश्ना-ए-ज़ौक़-ए-वफ़ा

अली अख़्तर अख़्तर

सफ़ीर-ए-लैला-4

अली अकबर नातिक़

सफ़ीर-ए-लैला-1

अली अकबर नातिक़

कसे कजावे महमिलों के और जागा रात का तारा भी

अली अकबर नातिक़

रोके से कहीं हादसा-ए-वक़्त रुका है

अली अहमद जलीली

ख़िज़ाँ की ज़र्द सी रंगत बदल भी सकती है

अलीना इतरत

जिस दिन से उठ के हम तिरी महफ़िल से आए हैं

अलीम उस्मानी

हर घर में कोई तह-ख़ाना होता है

आलम ख़ुर्शीद

उम्र-ए-गुरेज़ाँ के नाम

अख़्तर-उल-ईमान

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