सारा पर्दा है दुई का जो ये पर्दा उठ जाए
गर्दन-ए-शैख़ में ज़ुन्नार बरहमन डाले
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जवाँ होने लगे जब वो तो हम से कर लिया पर्दा
ये भी इक बात है अदावत की
वाए क़िस्मत वो भी कहते हैं बुरा
जब से बाँधा है तसव्वुर उस रुख़-ए-पुर-नूर का
बरहमन दैर से काबे से फिर आए हाजी
गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
हम जो पहुँचे तो लब-ए-गोर से आई ये सदा
हँस के फ़रमाते हैं वो देख के हालत मेरी
माँग लूँ तुझ से तुझी को कि सभी कुछ मिल जाए
फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो
कौन उठाएगा तुम्हारी ये जफ़ा मेरे बाद