अभी आए अभी जाते हो जल्दी क्या है दम ले लो
न छोड़ूँगा मैं जैसी चाहे तुम मुझ से क़सम ले लो
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सौ शेर एक जलसे में कहते थे हम 'अमीर'
गिरह से कुछ नहीं जाता है पी भी ले ज़ाहिद
मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी से
सरकती जाए है रुख़ से नक़ाब आहिस्ता आहिस्ता
पूछा न जाएगा जो वतन से निकल गया
मिसी छूटी हुई सूखे हुए होंट
दिल को तर्ज़-ए-निगह-ए-यार जताते आए
या-रब शब-ए-विसाल ये कैसा गजर बजा
है वसिय्यत कि कफ़न मुझ को इसी का देना
दिल जो सीने में ज़ार सा है कुछ
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर
फूलों में अगर है बू तुम्हारी