मिली है दुख़्तर-ए-रज़ लड़-झगड़ के क़ाज़ी से
जिहाद कर के जो औरत मिले हराम नहीं
Javed Akhtar
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Gulzar
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Rahat Indori
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शाएर को मस्त करती है तारीफ़-ए-शेर 'अमीर'
जब से बाँधा है तसव्वुर उस रुख़-ए-पुर-नूर का
ख़ुश्क सेरों तन-ए-शाएर का लहू होता है
फिर बैठे बैठे वादा-ए-वस्ल उस ने कर लिया
हाथ रख कर मेरे सीने पे जिगर थाम लिया
शैख़ कहता है बरहमन को बरहमन उस को सख़्त
करता मैं दर्दमंद तबीबों से क्या रुजूअ
हैं न ज़िंदों में न मुर्दों में कमर के आशिक़
हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
ज़ाहिद उमीद-ए-रहमत-ए-हक़ और हज्व-ए-मय
वाए क़िस्मत वो भी कहते हैं बुरा
देख ले बुलबुल ओ परवाना की बेताबी को