ख़ुश्क सेरों तन-ए-शाएर का लहू होता है
तब नज़र आती है इक मिस्रा-ए-तर की सूरत
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शब-ए-विसाल बहुत कम है आसमाँ से कहो
देख ले बुलबुल ओ परवाना की बेताबी को
हटाओ आइना उम्मीद-वार हम भी हैं
गले में हाथ थे शब उस परी से राहें थीं
अपनी महफ़िल से अबस हम को उठाते हैं हुज़ूर
शाख़ों से बर्ग-ए-गुल नहीं झड़ते हैं बाग़ में
गाहे गाहे की मुलाक़ात ही अच्छी है 'अमीर'
पहलू में मेरे दिल को न ऐ दर्द कर तलाश
अमीर लाख इधर से उधर ज़माना हुआ
अल्लाह-री नज़ाकत-ए-जानाँ कि शेर में
अच्छे ईसा हो मरीज़ों का ख़याल अच्छा है
गुज़र को है बहुत औक़ात थोड़ी